For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद तेरी है कोई दल दल क्या
डूबता जाता हूँ मैं ;पल पल क्या

हर क़दम पे मिले फ़ना आशिक़
है तुम्हारी गली भी मक़्तल क्या

हो गए चूर सपने बच्चों के
खा गई बाप को ये बोतल क्या

सच ओ ईमाँ की बात करता है
उसको कहता जहां ये पागल क्या

ढूंढ ही लेते हैं मुझे ये ज़ख़्म
ज़ख़्म भी बन गए है गूगल क्या

मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 5:40am

आअदरनीय गुमनाम भाई , बढिया गज़ल कही है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

हर क़दम पे मिले फ़ना आशिक़
है तुम्हारी गली भी मक़्तल क्या - --- लाजवाब !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 31, 2014 at 4:51pm

आदरणीय गुमनाम जी बहुत शानदार ग़ज़ल ..आखिरी शेर का तो जवाब नहीं .ढेरों बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 3:06pm

बहुत बढ़िया i  नये प्रतीक व् बिम्ब  i  याद और दलदल ---- वाह i

Comment by umesh katara on October 30, 2014 at 9:36am

वाहहहहह वाहहहहह क्या बात है मित्र

Comment by Saarthi Baidyanath on October 29, 2014 at 11:11pm

क्या बात ..बहुत खूब !

Comment by gumnaam pithoragarhi on October 29, 2014 at 4:05pm

धन्यवाद दोस्तों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कोशिशों को आप सराहते है तो ऊर्जा मिलती है

Comment by भुवन निस्तेज on October 29, 2014 at 11:24am
बहुत खूब आदरणीय भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी खास कर बोतल वला शेर तो क्या कहना....
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 28, 2014 at 9:48pm

ढूंढ ही लेते हैं मुझे ये ज़ख़्म
ज़ख़्म भी बन गए है गूगल क्या

बहुत बढ़िया , आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी।

Comment by gumnaam pithoragarhi on October 28, 2014 at 4:22pm

dhanywaad dosto.............aap ne saraha koshish safal hui

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2014 at 11:10am

वाह जी ..क्या बात 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service