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जी उठा मन” - गीतिका

 

जी उठा मन आज फिर से रात चंदा देखकर  |
थक गई थी प्रीत जग की रीत भाषा देखकर |


इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |


छू लिया फिर शीश मेरा संग बैठी देर तक ,
खूब बातें कर रही थी मुस्कुराता देखकर |


प्यार से बोली किरण फिर संग तुम मेरे चलो ,
राह रोशन कर रही थी साथ भाया देखकर |


चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |


मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |

 

(मौलिक अप्रकाशित)

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2014 at 12:06pm

आ० छाया शुक्ला जी

चाँद की चांदनी को महसूस करती छंद बद्ध रचना अंत में सत्य तक पहुँचती हुई..... बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:14am

//इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |//

बहुत ही सुन्दर गीतिका आ० छाया शुक्ला जी, बधाई स्वीकारें।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:46am

मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ, 
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |---वाह बहुत सुंदर और मनोहारी गीतिका रचना हुई है | सुंदर भाव रचित 

गीतिका छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आद छाया शुक्ला जी 

 ---

Comment by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 10:28am

चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |

आदरणीया छाया जी ,सुन्दर गीतिका है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 2:37pm

आ.sushil sarana जी आत्मीय सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 1:30pm

आ. विजय शंकर जी आत्मीय सराहना के लिया बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 1:29pm

आ. नरेन्द्रसिंह जी गीतिका की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! सादर नमन

Comment by Sushil Sarna on November 1, 2014 at 1:27pm

मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर | … जीवन का शाश्वत सत्य आपने बड़ी ख़ूबसूरती से ब्यान किया है आदरणीया … हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 1, 2014 at 12:11pm

चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
बहुत सुन्दर। पूरी गीतिका ही बहुत सुन्दर है आदरणीय छाया शुक्ला जी। बधाई।

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