जी उठा मन” - गीतिका
जी उठा मन आज फिर से रात चंदा देखकर |
थक गई थी प्रीत जग की रीत भाषा देखकर |
इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |
छू लिया फिर शीश मेरा संग बैठी देर तक ,
खूब बातें कर रही थी मुस्कुराता देखकर |
प्यार से बोली किरण फिर संग तुम मेरे चलो ,
राह रोशन कर रही थी साथ भाया देखकर |
चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
आ० छाया शुक्ला जी
चाँद की चांदनी को महसूस करती छंद बद्ध रचना अंत में सत्य तक पहुँचती हुई..... बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई
//इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |//
बहुत ही सुन्दर गीतिका आ० छाया शुक्ला जी, बधाई स्वीकारें।
मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |---वाह बहुत सुंदर और मनोहारी गीतिका रचना हुई है | सुंदर भाव रचित
गीतिका छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आद छाया शुक्ला जी
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चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
आदरणीया छाया जी ,सुन्दर गीतिका है |सादर अभिनन्दन |
आ.sushil sarana जी आत्मीय सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर नमन
आ. विजय शंकर जी आत्मीय सराहना के लिया बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर नमन
आ. नरेन्द्रसिंह जी गीतिका की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! सादर नमन
मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर | … जीवन का शाश्वत सत्य आपने बड़ी ख़ूबसूरती से ब्यान किया है आदरणीया … हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
बहुत सुन्दर। पूरी गीतिका ही बहुत सुन्दर है आदरणीय छाया शुक्ला जी। बधाई।
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