For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जी उठा मन” - गीतिका

 

जी उठा मन आज फिर से रात चंदा देखकर  |
थक गई थी प्रीत जग की रीत भाषा देखकर |


इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |


छू लिया फिर शीश मेरा संग बैठी देर तक ,
खूब बातें कर रही थी मुस्कुराता देखकर |


प्यार से बोली किरण फिर संग तुम मेरे चलो ,
राह रोशन कर रही थी साथ भाया देखकर |


चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |


मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |

 

(मौलिक अप्रकाशित)

 

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2014 at 12:06pm

आ० छाया शुक्ला जी

चाँद की चांदनी को महसूस करती छंद बद्ध रचना अंत में सत्य तक पहुँचती हुई..... बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:14am

//इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |//

बहुत ही सुन्दर गीतिका आ० छाया शुक्ला जी, बधाई स्वीकारें।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:46am

मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ, 
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |---वाह बहुत सुंदर और मनोहारी गीतिका रचना हुई है | सुंदर भाव रचित 

गीतिका छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आद छाया शुक्ला जी 

 ---

Comment by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 10:28am

चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |

आदरणीया छाया जी ,सुन्दर गीतिका है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 2:37pm

आ.sushil sarana जी आत्मीय सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 1:30pm

आ. विजय शंकर जी आत्मीय सराहना के लिया बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on November 1, 2014 at 1:29pm

आ. नरेन्द्रसिंह जी गीतिका की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! सादर नमन

Comment by Sushil Sarna on November 1, 2014 at 1:27pm

मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर | … जीवन का शाश्वत सत्य आपने बड़ी ख़ूबसूरती से ब्यान किया है आदरणीया … हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 1, 2014 at 12:11pm

चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
बहुत सुन्दर। पूरी गीतिका ही बहुत सुन्दर है आदरणीय छाया शुक्ला जी। बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service