नैन कटीले …
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी यह कविता शृंगार (इस शब्द का शुद्ध वर्तनी यही है) रस से आप्लावित है. आपके प्रयास के लिए हार्दिक आभार आदरणीय.
यों बिम्बों एवं प्रतीकों में कोई नयापन नहीं है. लेकिन प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाया जा सकता था यदि इन भावों को मात्रिक कर साधा जाता. छन्दमुक्त होने के बावज़ूद प्रवाह को पकड़ने का प्रयास किया गया है. यह एक सकारात्मक स्थिति है.
ऐसे विषयों पर, इसी तरह की विधा में, आदरणीय सुशीलजी, केदारनाथ अग्रवाल की ’जमुन जल तुम’ या ’हे मेरी सुन’ को पढ़ सकते हैं. कथ्य और बिम्ब की दृष्टि से केदारनाथ अग्रवाल को पढ़ना कविकर्म के हिसाब से अत्यंत उचित होगा.
सादर
शृंगार रस से पगी रचना अच्छी हुयी है, बधाई आदरणीय सरना जी।
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
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