परिचय हुआ जब दर्पण से ….
परिचय हुआ जब दर्पण से
तो चंचल दृग शरमाने लगे
अधरों में कंपन होने लगी
अंगड़ाई के मौसम .छाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से ….
ऊषा की लाली गालों पर
प्रणयकाल दर्शाने लगी
पलकों को अंजन भाने लगा
भ्रमर आसक्ति दर्शाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से …
पलकों के पनघट पर अक्सर
कुछ स्वप्न अंजाने आने लगे
बेमतलब नभ के तारों से
फिर मन ही मन बतियाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से …
आवारा सी इक कुंतल लट
कलोल कपोल पे करने लगी
झोंके समीर के आँचल को
लाज़ का अर्थ समझाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से
तो चंचल दृग शरमाने लगे …
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी रचना पर आपकी आत्मीय मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय somesh kumar जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
//आवारा सी इक कुंतल लट
कलोल कपोल पे करने लगी
झोंके समीर के आँचल को
लाज़ का अर्थ समझाने लगे//
दर्पण से यूँ परिचय होना अच्छा लगा आ० सुशील सरना जी।
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
आप की ये रचना किशोर-अवस्था के शुरुवाती पलों की याद दिलाती है ,सुंदर भावों और कोमल शब्दों के माध्यम से इस रचना को प्राणवान करने के लिए साधुवाद |
आवारा सी इक कुंतल लट
कलोल कपोल पे करने लगी
झोंके समीर के आँचल को
लाज़ का अर्थ समझाने लगे----------अति सुन्दर i बढिया शृंगार i
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