स्नेह रस से भर देना …..
कुछ भी तो नहीं बदला
सब कुछ वैसा ही है
जैसा तुम छोड़ गए थे
हाँ, सच कहती हूँ
देखो
वही मेघ हैं
वही अम्बर है
वही हरित धरा है
बस
उस मूक शिला के अवगुण्ठन में
कुछ मधु-क्षण उदास हैं
शायद एक अंतराल के बाद
वो प्रणय पल
शिला में खो जायेंगे
तुम्हें न पाकर
अधरों पर प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी
अवकुंचित होकर शिला हो जायेंगे
लेकिन पाषाण हृदय पर
कहाँ इन बातों का असर होता है
घाव कहीं भी हो
उसे नेत्र जल ही धोता है
उच्च पर्वत शिखरों के मध्य
दूर अन्नंत में विलुप्त होती राह
हमारी स्मृतियों की धरोहर हो गयी है
मेरे काजल युक्त अश्रु मेघों से तुम्हें
मेरी हृदय पीड़ा का आभास हो जाएगा
व्योम के इन्द्रधनुष का हर रंग
मधु क्षणों को दोहराएगा
मेरे याचक नयनों की मौन अभिलाषा
तुम्हारी नयन देहरी तक
ये पवन ले आयेगी
देखो तब
सजल नयनों के
मौन निमन्त्रण को स्वीकार कर लेना
अपनी प्रेयसी के
विरही एकाकी पलों को
अपने स्नेह रस से भर देना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
भावपूर्ण लाजवाब रचना मन को छू गई | हार्दिक बधाई श्री सुशील सरना जी
बहुत खूब आ० सरना जी। बहुत सुन्दर और भावपूर्ण हेतु बधाई स्वीकारें।
आमीन i ईश्वर आपकी अदम्य अभिलाषा पूरी करे i
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..हार्दिक बधाई आ० सुशील सरना जी
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