उसने खौला लिया था सूरज एक चम्मच चीनी के साथ
वह जीवन के कडुवे अंधेरों में कुछ मिठास घोलना चाहता था
उसके दिन के उजाले चाय के कप में डूबे हुए थे
और उसका सूरज
ताजगी देता हुआ जीवन की उष्मा से भरपूर
गर्म शिप बनकर उतर आता था लोगों की जिव्हा पर
.
उसकी केतली घुमती थी बाजार भर
और वह पहाड़ की ओट के ढालान पर
सर्दी में भी
दिन की ठंडी छाया में
शीतल सरसराती हवाओं में ठिठुरता हुआ
छोटे कांच के गिलास में
उड़ेल कर
गर्मी और जायके का व्यापार करता था .......
.
नहीं जानता था वह ग्रीन टी
न चाय निम्बू की
पुश्तों से जाना था
ब्रुक बांड टी और गाढ़ा भैंस का दूध
जो दुह कर मुंह सवेरे वह निकल पड़ता था
उसकी चाय का कुछ ख़ास स्वाद होता था|
...
कुछ थकेहारे लम्बे सफ़र के
ट्रक चालक
उन गिलासों के साथ अपनी थकान वहीँ छोड़ जाते थे
वह तुरंत पलट कर धो देता था गिलास
पानी से धोते हुए जम जाते थे उसके हाथ
आखिर पानी बाँझ की जड़ों का रिसता जल था
पहाड़ का सबसे स्वादिष्ट सबसे ठंडा तरल
और वह रात को बाजार की आखिरी बंद होती दूकान के बाद
अपनी चादर पटरा समेटता था
कुछ बर्तन हाथ में और होता था कंधें में एक झोला
दूर से टकटकी लगाये उसका बाट जोहती चार जोड़ी निगाहें
और उस दिशा में उकाल पर चढ़ता
वह धौकनी होती अपनी फूलती साँसों की परवाह न करता
.
आखिरी धार पर मिट्टी की झोपडी
कि घर के भीतर घुसते ही
उसके कंधे के झोले की ओर
प्रश्नवाचक उत्सुक निगाहें
झोले के बंद रहस्य में छिपे
बहुरंगी खुशियों को घेर लेती
वह झोला खोल देता
और
बरबस उन निगाहों में
चमक उतर आती ......
कितने ही सूरज उसके घर उस वक्त जगमगा उठते|
तब उस रात के अँधेरे में
वह खुशियों से भरा
एक गुनगुना दिन जोड़ लेता | ...
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीया नूतन जी
नए प्रतीक और बिम्बों से सजी इस कविता में आपका कौशल छिपा है i बहुत सुन्दर और स्तरीय रचना i
कितने ही सूरज उसके घर उस वक्त जगमगा उठते|
तब उस रात के अँधेरे में
वह खुशियों से भरा
एक गुनगुना दिन जोड़ लेता | ...
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बहुत ही मार्मिक भावाभिव्यक्ति.............हार्दिक बधाई। |
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