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एक किस्सा उसी ने बनाया मुझे
फिर तो पूरे शह़र ने ही गाया मुझे
बात आँखों से आँखों ने छेडी ज़रा
रात को छत पे उसने बुलाया मुझे
चाँद शामिल रहा फिर मुलाकात में
प्यार का गीत उसने सुनाया मुझे
रात चढ़ती गयी बात बढ़ती गयी
उसने बाहों में भरके सुलाया मुझे
मिल गये दिल, बदन से बदन मिल गये
पंछियों की चहक ने ज़गाया मुझे
सुब्ह होने से पहले दिखा आयना
खुद हक़ीक़त से मेरी मिलाया मुझे
किस तरह से हुयी है वो मजबूर अब
राज दिल का उसी ने बताया मुझे
रात पहली मिलन की हुयी आखिरी
और फिर आँसुओं से झुकाया मुझे
छोड़कर हाथ उसने ज़रा घूमकर
अपने सीने से रोकर लगाया मुझे
अश्क बहने लगे हो गया दूर वो
चाँद ने मुस्कराकर ज़लाया मुझे
अगले पल ही जुदा हो गयी जिन्दगी
वक्त ने कहर अपना दिखाया मुझे
आ गया हर तरफ एक तूफान सा
जिन्दगी ने बहुत ही सताया मुझे
मैं तो भूला नहीं हूँ उसे आज तक
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया योगराज प्रभाकर जी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये साधुबाद
शु्क्रिया Mohinder kumar जी
शुक्रिया डा.विजय शंकर जी
आदरणीय गिरिराज जी आ.बागी जी बातों पर मैंने ध्यान दिया है.....आदरणीय बागी जी को और आपको साधुबाद
आदरणीय उमेश भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकारें । आ. बागी जी की बातों का ख्याल ज़रूर करें ।
मैं तो भूला नहीं हूँ उसे आज तक
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे
क्या बात है , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय उमेश कटारा जी , बधाई।
मिलन की खुशी और बिछोड के दर्द मेँ डूबी गजल के लिये बधाई आदरणीये उमेश जी.
ग़ज़ल अच्छी हुई है जिस हेतु बधाई प्रेषित है आ० उमेश कटारा जी। भाई गणेश बागी जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु उठाये थे, लेकिन आप शायद उन्हें नज़र-अंदाज़ कर गए। मेरी राय में उनका संज्ञान लेना अति आवश्यक है। एक गुज़ारिश और है कि आप प्रतिक्रिया भी देवनागरी में ही दिया करें।
shukriya Ramshiromani pathak ji
मैं तो भूला नहीं हूँ अभी तक उसे
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे////बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई आपको
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