कोई भी लफ्ज आगे से नहीं सच का निकालेंगे
जुबाँ गर जह्र जो उगले जुबाँ को काट डालेंगे
चलो तनहाई को लेकर यहाँ से दूर चलते हैं
ग़मे दिल के सहारे से नयी दुनिया बसालेंगे
मग़र तरक़ीब तो कोई बतादे बेव़फा हमको
तेरी हो याद ज़ोरों पर भला कैसे सँभालेंगे
कभी भी जुर्म के आगे मेरा सर झुक नहीं सकता
अना के वास्ते अपनी उसी दिन सर कटालेंगे
लगा है देश अब घुटने सियासत कायदे भूली
कभी आवाम के आँसू सियासत को डुबालेंगे
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको................... |
shukriya Alok Mittal ji
Shukriya Giriraj Bhandari sahab
shukriya Er. Ganesh ji Bagi sahab
shukriya yograj prabhakar ji
shukriya Dr Gopal narayan ji
shukriya Sushil sarna ji
चलो तनहाई को लेकर यहाँ से दूर चलते हैं
ग़मे दिल के सहारे से नयी दुनिया बसालेंगे … बहुत ही बढ़िया शे'र और दिलकश ग़ज़ल .... हार्दिक बधाई आदरणीय कटारा जी
बहुत सुन्दर कटारा जी i आपको बधाई i
बढ़िया ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी, बधाई स्वीकारें।
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