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करें कैसे भरोसा जिन्दगी का !
नहीं है आदमी जब आदमी का !!

नहीं फिर लूट पाता वो हमें भी !
वहाँ पर साथ होता गर किसी का !!

करे वो प्यार भी तो पागलो सा !
मगर ये खेल लगता दिल्लगी का

नहीं करता अगर हम को इशारे !
न होता सामना नाराजगी का !!

इबादत से डरे क्यों हम खुदा की !
मिले है रास्ता जब बंदगी का !!

अगर अपना समझ कर साथ में हो
भरोसा तो करो फिर दोस्ती का !!
.
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2014 at 9:52am

बहुत ही लाजवाब मतला. बहुत अच्छी गजल लगी आपकी,आदरणीय आलोक जी. बहुत-बहुत बधाई आपको

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 9, 2014 at 9:32pm
करे वो प्यार भी तो पागलो सा !
मगर ये खेल लगता दिल्लगी का

wah khoob......
Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:18pm

बहुत प्यारी ग़ज़ल आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2014 at 11:10am

बहुत ही सुन्दर मतला के साथ प्रस्तुत यह ग़ज़ल प्यारी हुई है, सभी अशआर उम्दा लगें, बधाई आदरणीय मित्तल साहब।

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