करें कैसे भरोसा जिन्दगी का !
नहीं है आदमी जब आदमी का !!
नहीं फिर लूट पाता वो हमें भी !
वहाँ पर साथ होता गर किसी का !!
करे वो प्यार भी तो पागलो सा !
मगर ये खेल लगता दिल्लगी का
नहीं करता अगर हम को इशारे !
न होता सामना नाराजगी का !!
इबादत से डरे क्यों हम खुदा की !
मिले है रास्ता जब बंदगी का !!
अगर अपना समझ कर साथ में हो
भरोसा तो करो फिर दोस्ती का !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत ही लाजवाब मतला. बहुत अच्छी गजल लगी आपकी,आदरणीय आलोक जी. बहुत-बहुत बधाई आपको
बहुत प्यारी ग़ज़ल आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको
बहुत ही सुन्दर मतला के साथ प्रस्तुत यह ग़ज़ल प्यारी हुई है, सभी अशआर उम्दा लगें, बधाई आदरणीय मित्तल साहब।
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