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सड़क भी अब मुझसे तेज दौड़ती है

तुम

मेरी प्रतीक्षा करना

उस मोड़ पर

मुड जाता है जो

मेरे घर की ओर

मैं दौड़ कर पहुचुंगा

तब भी

जबकि मैं जानता हूँ

सड़क भी अब

मुझसे तेज दौड़ती है !!

मेरी आवाज़ सुन लेना

ग़र मैं पुकार न सकूं

मेरा दर्द महसूस करना

ग़र मैं कराह न सकूं !!

मैं इतना साहसी नहीं

छीन सकूं दुनिया से तुम्हें

इतना कमजोर भी नहीं 

की विद्रोह न कर सकूं

तुम्हे पाने के लिए

तुम

मेरी प्रतीक्षा करना

उस मोड़ पर

मुड जाता है जो

मेरे घर की ओर

मैं दौड़ कर पहुचुंगा

तब भी

जबकि मैं जानता हूँ

सड़क भी अब

मुझसे तेज दौड़ती है !! 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 12:32pm

आपका हार्दिक आभार श्री नीरज कुमार “नीर” जी ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 12:30pm

आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी ।

 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 12:27pm

रचना पर अपने अनमोल विचार देने के लिए आपका हार्दिक आभारश्री सोमेश कुमार जी !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 12:26pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय योगराज जी।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 12, 2014 at 11:36am

 बहुत खूब आ० हरिप्रकाश दुबे जी, अच्छी अभिव्यक्ति है ।

Comment by Neeraj Neer on November 12, 2014 at 11:35am

बहुत बढियां ॥

Comment by Shyam Narain Verma on November 12, 2014 at 10:24am

सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by somesh kumar on November 12, 2014 at 8:44am

सड़क भी मुझसे तेज़ दौड़ती है /जीवन में छूट जाने की पीड़ा और ये दौड़ ,इन्सान की बेबसी  और फिर मिलने की आस और इंतजार ,सुन्दरता पूर्वक इस भाव को जताने के लिए ,शुभकामना 

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