तुम
मेरी प्रतीक्षा करना
उस मोड़ पर
मुड जाता है जो
मेरे घर की ओर
मैं दौड़ कर पहुचुंगा
तब भी
जबकि मैं जानता हूँ
सड़क भी अब
मुझसे तेज दौड़ती है !!
मेरी आवाज़ सुन लेना
ग़र मैं पुकार न सकूं
मेरा दर्द महसूस करना
ग़र मैं कराह न सकूं !!
मैं इतना साहसी नहीं
छीन सकूं दुनिया से तुम्हें
इतना कमजोर भी नहीं
की विद्रोह न कर सकूं
तुम्हे पाने के लिए
तुम
मेरी प्रतीक्षा करना
उस मोड़ पर
मुड जाता है जो
मेरे घर की ओर
मैं दौड़ कर पहुचुंगा
तब भी
जबकि मैं जानता हूँ
सड़क भी अब
मुझसे तेज दौड़ती है !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपका हार्दिक आभार श्री नीरज कुमार “नीर” जी ।
आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी ।
रचना पर अपने अनमोल विचार देने के लिए आपका हार्दिक आभारश्री सोमेश कुमार जी !
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय योगराज जी।
बहुत खूब आ० हरिप्रकाश दुबे जी, अच्छी अभिव्यक्ति है ।
बहुत बढियां ॥
सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई |
सड़क भी मुझसे तेज़ दौड़ती है /जीवन में छूट जाने की पीड़ा और ये दौड़ ,इन्सान की बेबसी और फिर मिलने की आस और इंतजार ,सुन्दरता पूर्वक इस भाव को जताने के लिए ,शुभकामना
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