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         वर्ष का पहला दिन, दीवार पर टंगा नया कैलेण्डर और जनवरी का पृष्ठ अपने भाग्य पर इतरा रहा था, बाकी महीनों के पृष्ठ दबे जो पड़े थे, सभी को प्रणाम करते देख वह अहंकार और आत्ममुग्धता से भर गया उसे क्या पता कि लोग उसे नहीं बल्कि उस पृष्ठ पर लगी माँ लक्ष्मी की तस्वीर को प्रणाम करते हैं ।
                    दिन-महीने बीतते गये, संघर्ष सफल हुआ और सबसे नीचे दबा दिसंबर माह का पृष्ठ आज सबसे ऊपर था । उसके ऊपर लगी माँ सरस्वती की तस्वीर बहुत ही सुन्दर लग रही थी ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : श्रेष्ठ कौन ?

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 23, 2014 at 1:30pm

नाऽहं कर्ता, हरिः कर्ता.. जिसने इस कथ्य के मूल को समझ लिया उसे फिर अपने आप पर अन्यथा गुमान नहीं होता. उसमें ईर्ष्या भी नहीं व्यापती, न उसके मन में लाघव के भाव घर करते हैं.

बहुत सुगढ़ता से आपने इस तथ्य को विस्तृत कर साझा किया है.
आपकी लघुकथाओं का विन्यास अब विस्तृत हो रहा है, गणेश भाई. यह हम पाठकों के लिए एक सुखद आयाम है.

एक संदेशपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 1:00pm

लघुकथा पसंद करने हेतु आभार प्रिय सोमेश जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 12:59pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय विनोद खंगवाल जी।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 23, 2014 at 12:58pm

आदरणीय गणेश भाईजी ,

लक्ष्मी मैया, सरस्वती की, आपस में बनती नहीं।

इसीलिए दोनों बहनें, कभी एक जगह रहती नहीं॥                                     

धन ज्ञानी के पास नहीं, अभावों में उमर बिताय।                                             

पर सदा प्रसन्न रहे ज्ञानी, धनवान रहे बौराय॥                                         

झूठ फरेब और बेइमानी से, दौलत बढ़ती जाय।                                       

ज्ञान हमें गुरु से मिले, जिसे कोई चुरा न पाय॥ 

आपकी लघु कथायें मुझे दो चार पंक्तियाँ लिखने का अवसर प्रदान करती हैं इसके लिए धन्यवाद और कथा की हार्दिक बधाई । 

Comment by विनोद खनगवाल on November 23, 2014 at 10:03am

bahut badiya aa. ganesh ji. badhai


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 22, 2014 at 9:04pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़ नतमस्तक हूँ, टंकण त्रुटि ठीक कर ली गयी है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 22, 2014 at 8:57pm

सराहना हेतु हृदय से आभार प्रेषित है आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

Comment by somesh kumar on November 22, 2014 at 8:26pm

अभिभूत हूँ इस लघुकथा से ,संदेश भी इतना सुंदर और स्पष्ट |लक्ष्मी है तो इतरा मत सरस्वती के उपासक भी एक दिन शिखर पर होंगे ,वस्तुतः दोनों का होना ही जीवन का अर्थपूर्ण करता है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2014 at 6:07pm

जहाँ सरस्वती आती है तो ज्ञान आता है  जिसके बल पर मानव लक्ष्मी को भी पा लेता है ..तो समझिये  अगले महीने सरस्वती जी आयेंगी  तो उससे अगले माह खुद लक्ष्मी जी भी आ जायेंगी और जो आज नहीं है वो कल होगा और ये दौर चलता रहता है आज वक़्त तुम्हारा है तो कल उसका होगा इसलिए किसी को कमतर कभी मत समझो ...बहुत बढ़िया सन्देश देती हुई एक सफल लघु कथा |

दो जगह तस्वीर में टंकण त्रुटी आ गई है ठीक कर लीजिये 

बहुत बहुत बधाई आपको आ० गणेश बागी जी 

Comment by Shyam Narain Verma on November 22, 2014 at 5:16pm

अति सुन्दर लघु कथा। बधाई।

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