For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यार बैरी बना आशिकी के लिये |

शोर होता रहा रोशनी के लिये |
लोग लड़ते रहे चाशनी के लिये |

बेबसी का नज़ारा न देखा कोई ,
मार होती रही चाँदनी  के लिये |

लूट मचती रही चीख होता रहा , 
अश्क गिरते रहे ज़िंदगी के लिये |

हाथ बाँधे खड़े देखते रह गये ,   
घर जला आग में दोस्ती के लिये |

नाव डूबी वहीँ आब ना था जहाँ ,
यार बैरी बना आशिकी के लिये | 

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 539

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2014 at 10:01am

अनुमोदन और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 12:35am

शोर होता रहा रौशनी के लिये |
लोग लड़ते रहे ढीबरी के लिये |

बेबसी का नज़ारा न देखा कोई ,
मार होती रही चाकरी के लिये |

लूट मचती रही शोर  होता रहा , 
अश्क गिरते रहे ज़िंदगी के लिये |

हाथ बाँधे खड़े देखते रह गये ,   
घर जला आग में दोस्ती के लिये |

नाव डूबी वहीँ आब कम था जहाँ ,
यार बैरी बना आशिकी के लिये | 

आदरणीय श्याम वर्मा जी आपने सुन्दर सर्जना की और  सुझाओं के बाद एक बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हो गई .... बधाई 

ये ग़ज़ल आज तो राधिका हो गई 

श्याम जीता रहा शायरी के लिए |

Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2014 at 2:54pm

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और केतन कमल जी सही राय देने के लिए आप लोगों का बहुत बहुत आभार |

सादर ..............

Comment by Ketan Kamaal on November 25, 2014 at 12:18pm

Bahut achche sujhaav diye hai Ganesh Ji ne waaah achchi koshish hai sahab kahte rahiye qamyabi milegi zaroor duaa karta hun 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 11:14am

 लूट मचती  रही  चीख होता रहा  i इसमें चीख होता रहा के स्थान पर शोर होता रहा कर सकते है i बाकी  गजल अच्छी है i

Comment by Shyam Narain Verma on November 24, 2014 at 10:12am

बहुत बहुत धन्यवाद जी ,  आपका हार्दिक आभार  |

सादर ........................


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 6:09pm

//शोर होता रहा रोशनी के लिये |
लोग लड़ते रहे चाशनी के लिये |//

शोर होता रहा रौशनी के लिये |
लोग लड़ते रहे ढीबरी के लिये |

मतला को सुधारा है ताकि काफिया सही हो सके, वरना प्रस्तुत ग़ज़ल खारिज हो जाती .

//बेबसी का नज़ारा न देखा कोई ,
मार होती रही चाँदनी के लिये |//

बेबसी का नज़ारा न देखा कोई ,
मार होती रही चाकरी के लिये |

काफिया बदला है ताकि दोनो मिसरो मे रब्त हो सके . शेष सभी अशआर बढ़िया हैं, बहुत बहुत बधाई आदरणीय .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"2122 1122 1122 22/112 तीरगी को न कोई हक़ ही जताने देनाइन चराग़ों को हुनर अपना दिखाने देना ख़ुद से…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"2122 1122 1122 22 वक़्त-ए-आख़िर ये सुकूँ रूह को पाने देना यार दीदार को आये मेरे आने देना 1 हक़ वतन का…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"दम्भ अपना भी उसे यार दिखाने देना पास बैठे वो अगर उठके न जाने देना।१। * गीत मेरे हैं भले एक न शिकवा…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"दर्द आज उनको सभी अपने मिटाने देना  मुझको ठोकर भी लगाएँ तो लगाने देना  उसके अरमानों को…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service