१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ |
नज़र के फेर में कितने फ़साने रोज बनते हैं | |
कहीं राधा कहीं मोहन बने लाचार जलते हैं | |
नज़ारा और होता है खिले जब फूल डाली में , |
कहीं खुशबू छिपाकर भी हज़ारों हाथ मलते हैं | |
सितारे रोज आते हैं फलक का शान बढ़ जाता , |
कहीं चंदा छिपा होगा निगाहें देख चलते हैं | |
कहीं भौंरे बने लाचार घूमें बाग़ बानों में , |
तड़प कर जान दे देते फ़साने रोज बनते हैं | |
कहीं पे जीत होता है कहीं पे हार भी वर्मा , |
मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं | . |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय |
वाह
सभी आ. साथियों का बहुत बहुत शुक्रिया, रचना को पढ़कर हौसला अफजाई करने का। सादर । |
आ० भाई श्यामनारायण जी , इस अच्छी भावात्मक ग़ज़ल के लिए बधाई .शेष प्रबुद्ध जन पहले ही कह चुके हैं . सादर ....
शानदार गजल ,,,,मन को छूती रचना ,,,आपको बहुत बहुत बधाई आ.श्याम नारायण वर्मा जी |
अच्छी गज़ल लगी पर विद्वान-साथियों की सलाह का अनुसरण करके इसे और निखार लें |प्रयास पर शुभकामनाएँ |
नज़र के फेर में कितने फ़साने रोज बनते हैं |
कहीं राधा कहीं मोहन बने लाचार जलते हैं |
सुंदर प्रस्तुति है दिलकश प्रस्तुति है किन्तु क्षमा सहित शायद टंकण त्रुटि प्रवाह में बाधक बन रही है। कृपया अन्यथा न लेवें आदरणीय।
वर्मा जी
सुन्दर प्रयास है i सादर i
सितारे रोज आते हैं फलक का शान बढ़ जाता , |
कहीं चंदा छिपा होगा निगाहें देख चलते हैं | |
कहीं भौंरे बने लाचार घूमें बाग़ बानों में , |
तड़प कर जान दे देते फ़साने रोज बनते हैं | आदरणीय श्याम जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |
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