For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिमूढ़ प्रस्ताव

परिमूढ़ प्रस्ताव

अखबारों में विलुप्त तहों में दबी पड़ी

पुरानी अप्रभावी खबरों-सी बासी हुई

ज़िन्दगी

पन्ने नहीं पलटती

हाशियों के बीच

आशंकित, आतंकित, विरक्त

साँसें

जीने से कतराती

सो नहीं पातीं

हर दूसरी साँस में जाने कितने

निष्प्राण निर्विवेक प्रस्तावों को तोलते

तोड़ते-मोड़ते

मुरझाए फूल-सा मुँह लटकाए

ज़िन्दगी...

निरर्थक बेवक्त

उथल-पुथल में लटक रही

अनिर्णीत

खंडित

समस्त संकल्पों को आदतन त्यागकर

लौट आती है अविरत

यंत्रबद्ध एक ही परिमूढ़ अपाहिज प्रस्ताव पर

कि चलूँ, कुछ और चलूँ, देख लूँ

शायद मोड़ लेती हुई सड़क

की दूसरी ओर

इस बार .... शायद इस बार

बेहिसाब झुठलावा न हो

अकेलापन न हो

न हो उलझन

न भटकन ...

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 2, 2014 at 9:43am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by Priyanka singh on November 26, 2014 at 7:54pm

शायद इस बार

बेहिसाब झुठलावा न हो

अकेलापन न हो

न हो उलझन

न भटकन ...... प्यार है और डर भी ...अंदेशा भी ....न मिल पाने का....समझ न पाने का ......होता है प्यार में, साथ में, सम्बन्धों में ऐसा होता है पर ....दिल से दिल का रिश्ता हो तो ....इतना भय क्यूँ ....हक से हाथ बढ़ाएं ....सवाल करें ....जवाब मांगे ....यकीं करे प्रेम में सिर्फ प्रेम ही होता है बाकी कोई संदेह नहीं .....खुबसूरत रचना के लिए बधाई विजय सर ....आपकी लेखनी को नमन ...

Comment by savitamishra on November 26, 2014 at 6:20pm

बहुत खुबसुरत कविता...सादर  नमस्ते 

Comment by vijay nikore on November 26, 2014 at 5:21pm

//नमन आप की लेखनी को//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया मीना जी।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2014 at 12:22pm

आदरणीय निकोर सर ..इस गूढ गंभीर रचना के लिए तहे दिल बधाई  सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:52am

खबरों-सी बासी हुई

ज़िन्दगी

पन्ने नहीं पलटती...बहुत खूब सर ,हार्दिक बधाई !

Comment by vijay nikore on November 25, 2014 at 10:44am

//वाह अनुपम भावाभिव्यक्ति //

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 25, 2014 at 9:15am
ज़िन्दगी
पन्ने नहीं पलटती
बहुत खूब , आदरणीय विजय निकोर जी , बधाई इस सुन्दर रचना के लिए।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:34pm

निकोर सर

प्रसन्नता हुयी की आप अपने किसी पुराने प्रेम  की कफस से इस बार आजाद  दिखे i पर भूत, वर्तमान और भविष्य आपको आशंकित ही करता है i प्रस्ताव कुछ सुखद भी परोस सकता है i यात्रा जारी रहे i  सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 3:26pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , तमाम निराशाओं के बाद भी कहीं आशा की किरण तलाशती ज़िन्दगी ! यही होता है , यही होना भी चाहिये । बहुत सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
5 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service