"माँ, तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी। तुम नानी बनने वाली हो।"- बेटी ने अपनी माँ को बताया जिसकी पिछले महीने ही शादी हुई थी।
"बेटा, तुमने यह बात किसी को बताई तो नहीं है।"
"नहीं माँ, क्या हुआ?"
"बेटा, एक बार अल्ट्रासाउंड करवा लेती तो ठीक रहता। पता लग जाता घर का चिराग है या लड़की।"
"लेकिन माँ, यह तो पहला बच्चा है। ऐसी बातें क्यों सोच रही हो?"
"तुम्हारी भाभी भी यूँ ही माॅर्डन बातें किया करती थी। अब उसको दो लड़कियाँ हैं। बेटा, घर को चिराग देने वाली औरत का मान-सम्मान अपने आप ही बहुत बढ़ जाता है।"
"ठीक है माँ, बताओ मुझे अब क्या करना है?"
"तुम ये प्रेगनेंसी वाली बात किसी को भी मत बताना और जल्दी से एक बार घर आ जाओ।"- माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
//रही बात ज्यादा मात्रा में लघुकथा भेजने की तो आदरणीय सर जी अगर ऐसा कोई नियम है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा।//
आदरणीय विनोद जी, प्रतीत होता है कि आपको मेरी टिप्पणी पुनः पढ़ने की आवश्यकता है, उक्त टिप्पणी एक पाठक की है, जिसमे क्वालिटी की उम्मीद की गयी है, यह आवश्यक नहीं की पाठक की उम्मीद लेखक पूरी ही करे, सादर ।
सुन्दर रचना ...बधाई आप को Vinod Khanagwal जी !
वाह री माँ की सीख ..................
आखिर कब तक चलेगा ये ...कब बदलेगी सोच
चिराग तले अन्धेरा ...दुःख होता है सुन् कर ये सब ...............सार्थक लघुकथा हेतु बधाई आप को
घर के चिराग की कामना अभी तक पढ़ी लिखी महिलाएं भी नहीं छोड़ पा रही | इस विडम्बना को दर्शाती सुंदर लघु कथा के लिए बधाई
अधिकतर नारी ही नारी की जड़ें काटती हैं ऐसा बहुदा देख गया है जब तक नारी खुद नारी का सम्मान नहीं करेगी तो समाज को क्या मेसेज देगी ,,,कहानी का विषय बहुत अच्छा है .बहुत- बहुत बधाई .
कब खत्म होगा ये कुरीतियाँ ....सुंदर कहानी आपकी
आदरणीय विनोद जी, इस विषय पर बहुत बार आप भी पढ़ें होंगे और हम सब भी, सच कहूँ तो सपाट बयानी सी लगी यह प्रस्तुति, आपसे क्वांटिटी की जगह क्वालिटी की उम्मीद रहती है, सादर ।
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