डाक्टर कहते है
स्वस्थ आनंदित जीवन के लिए
हंसो
ठठाकर हंसो , खिलखिलाकर हंसो
आकाश गुंजा दो ,अट्टहास करो
तभी तो
शरीर से झरेगा
ऐंडोर्फिन रसायन
जो हृदय को रखेगा मजबूत
नष्ट होंगे बैक्टीरिया, वायरस
सशक्त होगा प्रतिरक्षातंत्र
पर हंसू कैसे ?
बचपन में कोई फिसल कर गिरता
कीचड में सनता
या चिडिया करती बीट
तब हम ताली बजा कर हँसते
लोट-पोट हो जाते
मै और मेरी बहन हम, सब हमजोली
हंसने का जतन करते
माँ भी जानती थी
हंसने के फायदे
कभी वह खिलाती, कभी लाड़ करती
कभी गुदगुदाती , कभी चूम लेती
रात को हम सुनते दादी के खर्रान्टे
हंसी दबा कर हँसते
पर ज्वार सी उमड़ती
वह दबी हंसी
किसी विस्फोट सी
वह हंसी, जो रुकना न जानती
कन्टेजियस हंसी
जिसे आज के बच्चे शायद नहीं जानते
माँ तब दान्त पीस उठती
लगाती दो चांटे
फिर हम सुबकते, सो जाते
कभी हम देखते बहन को पिटते
बड़ा मजा आता
ऊपर से सहमा रहता
अन्दर से हँसता
बड़ी दादी बनती थी, खूब गयी कूटी
यह थी चुप हंसी, आह्लादकारी
बहन पास आती –‘गुड चना खाओगे,
माँ ने दिए हैं ‘
मै हंसी भूल जाता
फिर वह सुनाती, ढेर सारे चुटकुले
सुनकर हंसी आती
हम मिल कर हँसते
आज भी हम मिलकर
आफिस में हँसते है
अफसर के सामने खीसे निपोरकर
एक चाटुकार हंसी, एटीकेट लाफ्टर
घर में भी हंसी नहीं
हंसी किसी को आती नहीं
भूल गए हम सारे सेन्स ऑफ़ ह्यूमर
अब तो हंसाते है हमें कपिल शर्मा
राजू श्रीवास्तव उनके हमपेशा
पर मुझे इन विदूषको पर
शुष्क हँसी आती है
हँसना अंतर का सुप्त आह्लाद है
मरे हुए अन्तर में क्या रसवाद है
अब तो गुदगुदी से भी
हंसी मुझे आत्ती नहीं
मरे हुए मन को गुदगुदी हंसाती नहीं
दोस्तों ,कहते हुए सचमुच हंसी आती है
अब तो यह गुदगुदी मुझे बरबस रुलाती है I
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय योगराज जी
आपकी अप्रतिम टिप्पणी गुदगुदा गयी i सादर i
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति। यह सत्य है कि हंसी शायद आज की अटपटी जीवन शैली का हिस्सा ही नहीं रह गई है। इसकी कमी हालांकि महसूस भी की जा रही है, लेकिन शायद अब हालत इस अनमोल चीज़ को हम से छीन चुके हैं। इस अद्वितीय रचना हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
जवाहर लाल जी
आपके प्रोत्साहन का सादर आभार i
महर्षि जी
आभार i सस्नेह i
आदरणीय निकोर जी
सादर आभार i
आदरणीय हरिवल्लभ जी
आपका बहुत बहुत आभार i
मरे हुए मन को गुदगुदी हंसाती नहीं
दोस्तों ,कहते हुए सचमुच हंसी आती है
अब तो यह गुदगुदी मुझे बरबस रुलाती है I
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय श्री गोपाल नारायण साहब....
आजकल की हँसी की ,सुन्दर प्रस्तुति सर,बधाई स्वीकारें |
हँसी पर बहुत ही सशक्त रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय गोपाल नारायन जी।
हँसी जीवन के अमृत का कार्य करती है...हम खुलकर हँसते थे..खुद भी और दूसरों को हंसाते थे..पर आज जीवन एटीकेट मय हो गया घर दफ्तर अब भारी बोझिल हो गए ऐसे में हंसने की बजाये हसांने पर भी रोना आता है...विभिन्न आयामों को छूती सुन्दर प्रेरक रचना हेतु बधाई आदरणीय डॉ श्रीवास्तव जी.
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