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जब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी
तेरे चेहरे पे मेरी निगाहें रहेंगी
कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना
बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी
चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना
मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी
हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे
इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी
अक्ल के शहर में आ गया एक पागल
कब तलक बेगुनाह को सजायें रहेंगी
आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. उमेश भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही ! दिली बधाई कुबूल करें ।
आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी...........सुन्दर रचना ,बधाई श्री उमेश कटारा जी !
आदरणीय बहुत प्यारी ग़ज़ल //बधाई आपको
उम्दा गजल रचना के लिए बधाई श्री उमेश कटारा जी
//आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी//
वाह वाह, बढ़िया शेर हुआ है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बधाई स्वीकार करें आदरणीय उमेश जी ।
हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे
इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी-----ये सदा दिल से मेरी दुआएं रहेंगी कर के देखिये
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी हार्दिक बधाई
कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना
बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी
चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना
मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी
गज़ल को कई बार पढ़ा और उसमें घुले हो प्रेम में डूबता गया |सुंदर गज़ल
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