For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल--उमेश कटारा

क्या पता किस ख़ुदा ने बनायी मोहब्बत
पत्थरों से मुझे फिर करायी मोहब्बत

उसकी आँखों में सारा जहाँ मिल गया था
उसने हँसके ज़रा सा ज़तायी मोहब्बत

वो मेरा हा गया ,हो गया मैं भी उसका
हमने बर्षों तलक फिर निभायी मोहब्बत

रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था
चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत

पर खुदा हमसे नाराज रहने लगा तो
दिलजलों की तरह फिर जलायी मोहब्बत

हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों
दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत

ख़ाक में मिल गयी ,पल में बर्षों की चाहत 
फ़िरतो हँस हँसके सबने उड़ायी मोहब्बत

उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित



Views: 598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 10:45am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी, बधाई प्रेषित है। कृपया ग़ज़ल के साथ वज़न भी लिख दिया करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2014 at 1:29pm

आदरणीय मुकेश भाई , बढ़िया गज़ल हुई है ! हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2014 at 11:16am
हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों
दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत. वाह बहुत सुन्दर वाह!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 9:16pm

रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था
चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत--------बहुत खूब 'मुहब्बत' सही शब्द 

अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष बन रहा है    देख लें 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर आ० उमेश जी 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 4, 2014 at 8:15pm

गजल पर आपको दिल से बधाई

Comment by umesh katara on December 4, 2014 at 6:30am

Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 4, 2014 at 6:30am

Neeraj Mishra "प्रेम"जी शुक्रिया

Comment by Neeraj Nishchal on December 3, 2014 at 8:04pm
वाह वाह उमेश भाई बहुत लाजवाब ।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 7:38pm

सुंदर ग़ज़ल ,आपको हार्दिक बधाई  श्री उमेश कटारा जी !

Comment by umesh katara on December 3, 2014 at 6:36pm

शुक्रिया  Shyam Narain Verma जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
16 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
58 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश भाई, क्या ही खूब ग़ज़ल कही है. वाह. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. बाकी अभ्यास…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. गुनीजनों की सलाह पर अवश्य…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. समर सर की इस्लाह से तक़ाबुल ए रदीफ़ दूर हो गया है.शेर अब यूँ पढ़ा जाए .कड़कना बर्क़ का चर्बा…"
2 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"वाह वाह वाह आदरणीय निलेश सर, बहुत समय बाद आपकी अपने अंदाज़ वाली ग़ज़ल पढ़ने को मिली। सारी ग़ज़ल…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. लक्ष्मण जी,वैसे तो आ. तिलकराज सर ने विस्तार से बातें लिखीं हैं फिर भी मैं थोड़ी गुस्ताखी करना…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service