(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय बागी जी , व्यंग्य बाण की मार ऐसे ही होती है , हँसे कि रोये ? सुन्दर लघुकथा के लिये बधाइयाँ ।
सराहना हेतु आभार आदरणीय हरी प्रकाश जी।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति लघुकथा की सार्थकता को प्रमाणित करती है, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार।
सराहना हेतु आभार आदरणीय डॉ आशुतोष जी।
विरोधों में जो जले वो मशाल है
विरोधियों में जो लिखे वो कलम का लाल है |
हर बार की तरह इस बार भी गागर में सागर |लेखक की मनोदशा और उसकी सफ़लता का इतना सफल वर्णन |आप की लेखन-शैली से बहुत प्रभावित हूँ |एक अन्य मित्र निलेश जी हैं जिनकी लम्बी अनुपस्तिथि अखर रही है उम्मीद है वो भी शीघ्र हमारे बीच स्वस्थ होकर लौटेंगे |
आदरणीय गणेश भाईजी,
विष बुझे तीर सी लगती हैं, व्यंग्य कलम की मार।
तिलमिलाते नेता अफसर, जो हैं भ्रष्ट गद्दार ॥
हार्दिक बधाई लघु कथा की।
नेता लोग किसी और चीज से इतना नहीं डरते जितना अखबार से डरते हैं .....उस पर कविता भी ऐसी ....तो धमकियाँ ही तो देना जानते हैं बढ़िया कटाक्ष के साथ एक लेखक की मनोदशा को भी भलिभांति दर्शाया है लघु कथा में ...बहुत ही उत्कृष्ट लघु कथा बनी ही \हार्दिक बधाई आ० गणेश जी
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