For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं

लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं

आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं

सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं

सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं

सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं

बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं

गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 9:49pm

शुक्रिया श्रीमान गिरिराज भंडारी जी,..................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:30am

आदरणीय गुमनाम भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाई । सुधिजनो की सलाह पर ध्यान दीजियेगा ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 9, 2014 at 6:29pm

शुक्रिया श्रीमान ..................


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 11:53am

ग़ज़ल अच्छी लगी, कृपया आ० सौरभ पाण्डेय जी एवं गणेश बागी जी की बातों पर ध्यान दें।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 10:33am

अच्छी गज़ल ,पर जैसा सौरभ जी ने लिखा कृपया प्रस्तुति पे और ध्यान दें |

पर मुझे भाव अच्छे लगे |शायद अपनी-अपनी गहराई की बात है |

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 8, 2014 at 6:30pm
सर इतने विस्तार से समीक्षा की है शुक्रिया ,,,,,,,,, और समझ में आया है कि बहुत परिश्रम की जरूरत है,,,,,,, एक बार फिर से शुक्रिया

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2014 at 3:59pm

भाई गुमनामजी, आपकी ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.  यह अवश्य है कि इस ग़ज़ल की बहर २१२२ १२१२ २२/११२  है. हम इस पटल पर सदा से कहते रहे हैं कि ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल के मिसरों के वज़न भी दे दिया करें. ऐसा करना ग़ज़लकार के साथ-साथ पाठकों को भी कई तरह की दुविधाओं से दूर रखता है.

इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं  ....  मतले से बात स्पष्ट नहीं हुई. वैसे आप जो कहना चाह रहे हैं वो ये कि इश्क फितूर नहीं है फिरभी शायद ही कोई इससे बचा हो. यदि ऐआ है तो इस भाव को शाब्दिक करने के लिए कुछ और प्रयास की आवश्यकता दिख रही है.  

लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं .......... सही बात. लेकिन इतना प्रीची (Preachy) होने की आवश्यकता क्यों ? .. :-))

आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं ............. बढिया इत्तला है यह.

सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं .............. भाव सही है. लेकिन कहन को तनिक और साधना होगा.

सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं ............. अब माँ को आधार बना कर कहा गया हो तो मैं आगे क्या कहूँ. लेकिन यह शेर सपाटबयानी की भेंट चढ गया दिख रहा है.

सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं ............... दौलत की कसौटी पर सूर के साथ तुलसी और रहीम ? ’तुलसीदास’ अपने समय के सबसे धनी ’कथावाचक-बाबा’ थे हुज़ूर ! और ’रहीम खानखाना’ जिल्लेइलाही अकबर के नवरत्नों में शुमार थे.. और तो और उसके साम्राज्य के सेनापति थे.. .. ;-))

बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं ................ वाह !

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 8, 2014 at 3:11pm
बहुत सुन्दर वाह!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 6:44pm

ग़ज़ल अच्छी लगी, किन्तु वजन समझ न सका, कृपया वजन / बहर बताना चाहेंगे।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2014 at 1:40pm

बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं    vaah -----kamaal 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service