इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं
लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं
आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं
सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं
सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं
सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं
बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया श्रीमान गिरिराज भंडारी जी,..................
आदरणीय गुमनाम भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाई । सुधिजनो की सलाह पर ध्यान दीजियेगा ।
शुक्रिया श्रीमान ..................
ग़ज़ल अच्छी लगी, कृपया आ० सौरभ पाण्डेय जी एवं गणेश बागी जी की बातों पर ध्यान दें।
अच्छी गज़ल ,पर जैसा सौरभ जी ने लिखा कृपया प्रस्तुति पे और ध्यान दें |
पर मुझे भाव अच्छे लगे |शायद अपनी-अपनी गहराई की बात है |
भाई गुमनामजी, आपकी ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. यह अवश्य है कि इस ग़ज़ल की बहर २१२२ १२१२ २२/११२ है. हम इस पटल पर सदा से कहते रहे हैं कि ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल के मिसरों के वज़न भी दे दिया करें. ऐसा करना ग़ज़लकार के साथ-साथ पाठकों को भी कई तरह की दुविधाओं से दूर रखता है.
इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं .... मतले से बात स्पष्ट नहीं हुई. वैसे आप जो कहना चाह रहे हैं वो ये कि इश्क फितूर नहीं है फिरभी शायद ही कोई इससे बचा हो. यदि ऐआ है तो इस भाव को शाब्दिक करने के लिए कुछ और प्रयास की आवश्यकता दिख रही है.
लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं .......... सही बात. लेकिन इतना प्रीची (Preachy) होने की आवश्यकता क्यों ? .. :-))
आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं ............. बढिया इत्तला है यह.
सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं .............. भाव सही है. लेकिन कहन को तनिक और साधना होगा.
सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं ............. अब माँ को आधार बना कर कहा गया हो तो मैं आगे क्या कहूँ. लेकिन यह शेर सपाटबयानी की भेंट चढ गया दिख रहा है.
सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं ............... दौलत की कसौटी पर सूर के साथ तुलसी और रहीम ? ’तुलसीदास’ अपने समय के सबसे धनी ’कथावाचक-बाबा’ थे हुज़ूर ! और ’रहीम खानखाना’ जिल्लेइलाही अकबर के नवरत्नों में शुमार थे.. और तो और उसके साम्राज्य के सेनापति थे.. .. ;-))
बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं ................ वाह !
ग़ज़ल अच्छी लगी, किन्तु वजन समझ न सका, कृपया वजन / बहर बताना चाहेंगे।
बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं vaah -----kamaal
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