२२ २२ २२ २२/१२१
रंगों की नादानी देखो
तेरी करें गुलामी देखो
चाँद धनुक गुलशन और हूर
तेरी रचें जवानी देखो
पहले आम की नई बौरें
यौवन से अनजानी देखो
जोग लगा दे जोग छुड़ा दे
सूरत एक सुहानी देखो
शेख बिरहमन करने लगे
रब से बेईमानी देखो
तुझको पूजूं या प्यार करू
ये अजब परेशानी देखो
तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा
कहके प्रेम कहानी देखो
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
धन्यवाद दोस्तो आपका साथ हमेशा अपेक्षित है ,,,,,,,,,,,,,,
बहुत बढ़िया आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल करें। वैसे छठे शेर की रवानी और अच्छी हो सकती है,
गोपाल नारायण जी सादर नमस्कार धन्यवाद आप लोगो के ही प्रोत्साहन से कुछ लिखने कहने की कोशिश कर पाता हूँ आप सराहते हैं तो हौसला मिलता है ........ जहाँ तक गुमनाम का सवाल है बड़े बड़े नामो के बीच कई गुमनाम ही रह जाते है एक और सही ........
गुमनाम जी
ऐसी खूबसूरत गजल कहने वाला गुमनाम कैसे हो सकता है ? सादर i
गुमनाम जी
शुरु से अंत तक ,हर लफ्ज़ दिल से जुड़ता हुआ महसूस हुआ |
शेख बिरहमन करने लगे
रब से बेईमानी देखो ...उम्दा
बेहतरीन रचना आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी हार्दिक बधाई आपको !
शेख बिरहमन करने लगे
रब से बेईमानी देखो.....सुन्दर रचना आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी! हार्दिक बधाई !
बहुत सुन्दर भाव हैं। बधाई।
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