For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 हाँ

किसी अज्ञात यात्रा से

लोग यहाँ  आते है

कोई आता है चुपके से दुबक कर

कोई आता है सीने से चिपककर

कोई आता इन्तेजार ख़त्म करने

किसी के आने पर बजते है नगाड़े

ढोल-ताशे   

 

यहाँ आकर

फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा

गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की

परिश्रम गंवाने की कुछ सुस्ताने की

जी भर रोने की मन-मैल धोने की

शांति से सोने की खुद अपने होने की

 

जो अभी यहीं है

उन्हें कही जाना है

किसी से किया हुआ वादा निभाना है

उन्हें इन्तेजार है  उस घड़ी आने की

जब कोई गाड़ी उन्हें ले जायेगी

हो सकता है वहां  जहाँ वह चाहते हों

शायद वहां भी जहाँ नहीं चाहते

 

एक् लम्बा सिलसिला है

आने-जाने वालो को

इसीलिये रहती है यहाँ एक भीड़ बड़ी

जहाँ देखो वही एक लम्बी सी लाइन खडी

मै भी खड़ा हूँ यहाँ जीवन की रेल के

छोटे प्लेटफार्म पर कभी तो आयेगी

नींद से जगाएगी मुझे ले जायेगी 

छुक-छुक रेलगाड़ी   

 

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 11:14am

महनीया राजेश कुमारी जी

आपका शत शत आभार i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 18, 2014 at 8:53pm

अपनी अपनी बारी के इन्तजार में हम सब उसी नौका में सवार हैं आदरणीय ..जीवन के इस चक्र से कोई बच कर भी तो नहीं जा सकता और ये भी सच है पुराने पत्ते झड़ेंगे तभी तो नए आयेंगे .....आध्यात्मिक सोच को लिए ये अभिव्यक्ति बहुत शानदार हुई ...हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 5:27pm

शिज्जू भैय्या

आप सब का प्रेम प्रतिफलित होता रहे   i सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 5:25pm

नीरज  जी

आप तो 'प्रेम ' हैं ही i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 5:25pm

आ0 सौरभ जी

आपका अनुमोदन  आश्वस्तिदायक है i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 5:23pm

आ0 अनुज

आपका हार्दिक आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2014 at 7:56pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आप बातों ही बातों में गहरी बात कह जाते हैं बड़ी खूबसूरत रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Neeraj Nishchal on December 17, 2014 at 10:34am
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आदरणीय गोपाल नारायण जी बहुत बहुत बधाई ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2014 at 10:15am

आदरणीय गोपाल नारायनजी, यात्रा की अभिव्यंजना पर आत्मनिवेदन तथा सरल शब्दों में संप्रेषण भला लगा है. वेदों में उद्धृत जीवनक्रम को इंगित करता ’चरैवेति-चरैवेति’ का प्रारूप स्थूल-सूक्ष्म, भौतिक-अभौतिक चरणों में चलता रहता है.

आपकी इस रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 9:03am

आ. बड़े भाई , सारी जीवन यात्रा को आपने बहुत खूबसूरती से चन्द लाइनों मे बयाँ कर दिया है , बहुत बहुत बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service