कली तुझसे पूछूँ एक बात,
की जब होती है आधी रात,
कौन भवंरा बनके चुपचाप,
तेरी गलियों में आता है !!
कली से काहे पूछे बात,
की जब होती है आधी रात,
मैं महकती रहती हूँ चुपचाप,
बिचारा खिंच-खिंच आता है !!
कभी करता है मिलन की बात ,
सह काटों के आघात वो आधी रात,
नैन से नैन मिला कर चुपचाप,
वो भवंरा खुद शरमा जाता है !!
सखी क्या कह दूँ दिल की बात ,
की अब तो ढलती जाए रात,
नैनों के चलते बाण चुपचाप,
ये मनवा बिंध -बिंध जाता है !!
सोचती हूँ कह दूं दिल की बात ,
की तुम ले आओ बारात, आधी रात,
लिए तारों को संग चुपचाप,
सोचते सवेरा हो ही जाता है !!
वो भवंरा उड़-उड़ जाता है !!
वो भवंरा उड़-उड़ जाता है !!
.
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपका हार्दिक धन्यवाद सीमा तिवारी जी !
bahut sundar kavita likhi hai aapne aadarniya hari prakash dubey ji...gazab ki kalpana Shakti....bahut bahut badhai!!
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ह्रदय से आभार, ,आपकी प्रतिक्रिया- "आपकी हर कविता नए और अद्भुत रंग लेकर आती है" -मेरा प्रोत्साहन है, मेरा इनाम है ! सादर प्रणाम !
सोमेश भाई आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया एवं आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार !
कुछ अलग सी शैली लगी इस कविता में ,यही एक सफल लेखक की पहचान हैं यही नव-सृजन की उड़ान है ,बधाई
हरि प्रकाश जी
आपकी हर कविता नए और अद्भुत रंग लेकर आती है i बेहतरीन i सादर i
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