हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,
अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.
किये थे वादे हमने जो, मुझे भी याद है वो सब,
मनाया जश्न जो कुछ दिन, उसे तो याद रक्खोगे.
मुझे दिल्ली नहीं दिखती, समूचा देश दिखता है,
बिके हैं लोग जैसे भी, उसे तुम याद रक्खोगे.
अगर तुम चैन पा लोगे, मुझे तुम भूल जाओगे,
बढ़ेगी प्यास जब तेरी, तभी तो याद रक्खोगे.
वे नादां लोग होते हैं, अमन की चाह रखते हैं,
लुटेगा चमन जब तेरा, तभी तो याद रक्खोगे.
(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर अभिवादन ! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण साहब, सादर अभिवादन!
आपका आशीर्वाद मिला बहुत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ.आगे भी प्रयास जारी रहेगा ...सादर
आदरणीय श्री हरिवल्लभ शर्मा साहब, सादर अभिवादन!
यह मेरा पहला प्रयास है ...गजल लिखने के पूरे विधान से अभी अपरिचित हूँ कोशिश करूंगा आगे बेहतर लिख सकूं आपलोगों का मार्गदर्शन की अपेक्षा है. सादर !
जवाहरलाल जी
बहुत ही लाजवाब i एक एक शेर मानो मोती जड दिए गए हैं i ऐसी रचना में बधायी पर आपका हक बनता है i सादर i
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको |
बस मतला ?
बहुत सुन्दर शेर ...
हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,
अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे...याद रखने का एक नया नजरिया प्रस्तुत किया आपने ..सुंदर अशआरों हेतु बधाई आदरणीय.
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