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हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,

अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.

किये थे वादे हमने जो, मुझे भी याद है वो सब,

मनाया जश्न जो कुछ दिन, उसे तो याद रक्खोगे.

मुझे दिल्ली नहीं दिखती, समूचा देश दिखता है,   

बिके हैं लोग जैसे भी, उसे तुम याद रक्खोगे.

अगर तुम चैन पा लोगे, मुझे तुम भूल जाओगे,

बढ़ेगी प्यास जब तेरी, तभी तो याद रक्खोगे.  

वे नादां लोग होते हैं, अमन की चाह रखते हैं,

लुटेगा चमन जब तेरा, तभी तो याद रक्खोगे.

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

जवाहर लाल सिंह 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 6:35pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर अभिवादन ! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 6:34pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण साहब, सादर अभिवादन!

आपका आशीर्वाद मिला बहुत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ.आगे भी प्रयास  जारी रहेगा ...सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 6:15pm

आदरणीय श्री हरिवल्लभ शर्मा साहब, सादर अभिवादन!

यह मेरा पहला प्रयास है ...गजल लिखने के पूरे विधान से अभी अपरिचित हूँ कोशिश करूंगा आगे बेहतर लिख सकूं आपलोगों का मार्गदर्शन की अपेक्षा है. सादर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 6:15pm

जवाहरलाल  जी

बहुत ही लाजवाब i एक एक शेर मानो मोती जड  दिए गए हैं i ऐसी रचना में  बधायी पर आपका हक बनता है i सादर i

Comment by Shyam Narain Verma on December 22, 2014 at 6:07pm

बहुत  ही सुन्दर प्रस्तुति  //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 5:58pm

बस मतला ?

Comment by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 5:57pm

बहुत सुन्दर शेर ...

हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,

अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे...याद रखने का एक नया नजरिया प्रस्तुत किया आपने ..सुंदर अशआरों हेतु बधाई आदरणीय.

 

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