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ग़ज़ल - बोलिये किसको सुनायें.. // -- --सौरभ

2122 2122 2122 212

 

दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई  
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई

बाँधती आग़ोश में है.. धुंध की भीनी महक
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई

चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई

खेलता था मुक्त.. उच्छृंखल प्रवाही धार से
लौट वो आया लिये क्यों हर नदी सोयी हुई

बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई

जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई
========
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by दिनेश कुमार on December 28, 2014 at 7:18pm
बहुत ही सशक्त रचना है आदरणीय सौरभ सर जी। ख़ास तौर पर मतला बेहद खूबसूरत है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 6:37pm

आदरणीय हरिप्रकाशजी, रचना पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 10:03am

चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई....... .. वाह वाह बहुत सुन्दर गजल आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:11am

आदरणीय विजय शंकरसाहब, प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति उत्साह का कारण होती है.

आपकी मुखर बधाइयों के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:08am

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी शुभकामनाएँ मेरा संबल हैं. आपको ग़ज़ल रुचिकर लगी, यह मेरे लेखन का सौभाग्य है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:08am

भाई वीनस, आपको एक अरसे बाद पटल की ग़ज़ल पर देखना सुखद अनुभूति है.

सहयोग देने केलिए धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:08am

आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी सदाशयता का मैं आभारी हूँ. हमसभी समवेत इस ज्ञान-गंगा में डुबकी लगा रहे हैं.
आपका सहयोग बना रहे.
शुभ-शुभ
‌‌‌‌‌‌‌


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:07am

भाई सोमेशजी, हर रचना अपने रचनाकार के पास चाहे जिस रूप में हो, पटल पर आते ही पाठक के अनुसार अपने आपको अभिव्यक्त करने लगती है. आपने जैसा समझा वैसा साझा किया, इस हेतु मेरे मन में आपके प्रति गंभीर भाव हैं. आपकी सतत संलग्नता आपकी पाठकीय दृष्टि को सदिश करती जायेगी इसका हमें भान है.
आपने रचना को समय दिया तथा अपनी भावनाओं को आपने साझा किया इस हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 4:07am

भाई शिज्जूजी, अपनी रचनाओं पर आपके अनुमोदन का सदा से आकांक्षी रहा हूँ.
हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2014 at 9:18pm

आदरणीय सौरभ भाई , बहुत कठिन रदीफ़ तय किया आपने आदरणीय और उतनी ही खूबसूरती से निभा भी लिया है , वाह ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार  करें । 


बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई
अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई                ---- लाजवाब , ढेरों बधाइयाँ ।

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