आज हम भी मकान रखते है
साथ अपना जहान रखते है !!
प्यार से देख लो जरा तुम भी
आईने भी ज़बान रखते हैं !!
जिंदगी में कमी नहीं कोई
इसलिए कुछ गुमान रखते है !!
तुम हमें छोड़ कर नहीं जाना |
तुम में* हम अपनी*जान रखते हैं ||
साथ उनके रहे सभी अपने,
खास सबका भी* मान रखते है !!
फूल कितने खिलाय आँगन में
वो बहुत घर का* ध्यान रखते है !!
है सभी काम का पता उनको !
वो तजुर्बा तमाम रखते है !!
(अप्रकाशित और मौलिक )
** आलोक **
मथुरा
Comment
आ. मिथिलेश वामनकर जी...आपका आभार बहुत
आ. भुवन निस्तेज जी....आभार आपका आदरणीय
आ. Hari Prakash Dubey जी....बहुत बहुत शुक्रिया आपका दिलसे
आ. गिरिराज भंडारी भाई जी ....आपका दिल से आभार आपने मुझे कुछ नई जानकारी दी ...सुधार कर लूँगा ..आभार आपका
आ. Anurag Prateek जी ये चूक हो गयी हमसे ...बहुत माफ़ी मांगते है आप सब से ...
आ. Anurag Prateek जी.....दिल से आभार आपका ....
आ. शिज्जु "शकूर" जी आपका बहुत बहुत आभार आपने हौसाला बढाया है मेरा !..
आज हम भी मकान रखते है
साथ अपना जहान रखते है !!......आदरणीय आलोक मित्तल जी ,सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई !
आदरणीय आलोक भाई , खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाई स्वीकार करें ।
मै आ. शिज्जु भाई जी से सहमत हूँ -
मात्रा गिराने को चिन्हित करने से बहुत अच्छा होता है , गज़ल की बहर को ऊपर लिख देना , जो इस मंच की रचनाकारों से नम्र निवेदन भी है । बहर लिखने से न केवल मात्राये स्वयम समझ मे आ जाती है बल्कि अगर गज़ल का कोई मिसरा बेबह्र हो रहा हो तोभी जानकार इंगित कर सकते हैं
1 - आपने शायद - 2122 1212 22 /112 बहर मे ग़ज़ल कही है , इस बहर के हिसाब से --आईने भी ज़बान रखते हैं , मिसरे मे ई की मात्रा आप गिरा रहे हैं जो नियमतः उचित नहीं है ।
2- खास सबका भी* मान रखते है !! इस मिसरे मे - भी हटा देने से भी अर्थ वही रहता है , मेरे ख्याल से भी भर्ती का शब्द लगता है , सोच के देखियेगा । भर्ती के श्ब्दों से जहाँ तक हो सके बचना उचित है
3- वो तजुर्बा तमाम रखते है इस शे र मे काफिया ही बदल गया है , आन काफिया लेके आप चले हैं , यहाँ आम हो गया है । सुधार लीजियेगा ।
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