"तो बीबी जी कोनू जगह पक्की हुई सूट की?"
"जी, सरपंच जी।
वो जो बड़ के पेड़ के पास नदी है न, बस वहीँ नीतू के डूबने का सीन शूट करेंगे।"
"बीबी जी, बौराय गई हो का? हम तोहरा के पहले ही बतावत रहे अऊर एक बार फिर बताय देब, जब-जब उ नदी का पानी लाल होई जाई उहा मौजूद हर आदमी-औरत की मौत हुई जाई। सराप है उ नदी पे।"
"आप आज भी इन सब बातोँ पर यकीन करते हैँ?"
"तुम सहरी लोगन का यही तो प्राब्लम है कोनू की कछु नाही सुनत।"
अगले दिन सीन शूट होने लगा। अचानक नदी का पानी लाल हो गया।
सेट पर अफरा-तफरी मच गई और सब वहाँ से जान बचाने भागे।
और अगले दिन कैमरे मेँ आदमखोर जानवरोँ का जो सच कैद हुआ था उसने नदी के श्राप को हमेशा के लिए मिटा दिया।
"पूजा"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीया पूजा जी. वैसे आजकल अंधविश्वास कि घटनाएं कम ही देखने को मिल रही है. लघुकथा पर बधाई आपको
आदरणीय पूजा जी ,उत्तम रचना , हार्दिक बधाई आपको !
इस लघुकथा के माध्यम से आपने अंधविश्वास पर चोट करने की कोशिश की है आपने इसे और बेहतर बनाया जा सकता है
आदरणीया पूजा जी कथा बहुत अच्छी हुई है आपको हार्दिक बधाई
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