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-"देखो ये लाल-पीले आकाश मेँ उड़कर जाते पंछी कितने प्यारे लगते हैँ न?"
-"हाँ, भइया। आप ठीक कहते हो। ", उसने कुछ बेरूख़ी से कहा।

-"पर तूने क्यूँ चहकना बन्द कर रखा है आजकल, मेरी चिरैया?
कुछ बता तो क्या बात है?"

-"अब भइया मैँ क्या कहूँ ? आप परेशान हो जाओगे।"

-"तू बता तो बाकी सब मुझ पर छोड़।"
"भइया मुझे हॉस्टल मेँ नही रहना। मेर दम घुटता है वहाँ। वो सारी लड़कियाँ मुझे डाँटती रहती हैँ मुझे बात भी नही करने देती उन्हे डिस्टर्ब होता है न।
मैँ बाहर भी नही जा पाती। कभी कभी लगता है किसी ने मुझे नज़रबन्द कर दिया हो। कैद होकर रह गई हूँ।
पिँजरोँ मेँ चिरैया कैसे उड़ेगी?"

उसकी डबडबाई आँखोँ से आँसू का एक कतरा गिरता उससे पहले ही उस अनन्त सागर को अपनी बाँहोँ मेँ समेटकर रोकते हुए उसका सारा दर्द अपने अन्दर खीँच लिया उस भाई ने और उसे आश्वस्त करते हुए बोला-
"अब तुझे कभी खुद से दूर नही करूँगा।"

और गुड़िया भाई का हाथ थामे उस लाल-पीली शाम मेँ खुद को अनन्त आकाश मेँ उड़ते पँछियोँ सा आज़ाद महसूस करने लगी।

"पूजा"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by pooja yadav on January 1, 2015 at 9:29am

dhanywaad mithilesh ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 8:58pm
स्वतंत्रता के नए आयाम। संवाद शैली की रचना की विशिष्टताओं के विषय में तो मैं नहीं जानता लेकिन आदरणीय सौरभ सर की टिप्पणी के बरक्स लघुकथा को पढ़ा है। अच्छी लघुकथा है। इस शैली में मैं भी लिखने को प्रेरित हो रहा हूँ। आपको इस बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
Comment by pooja yadav on December 30, 2014 at 8:15pm
Maaf kijiyega aadarneey saurabh ji. .kintu aapki pratikriya ka arth samajhne mein aksham hu. .kripya vistaar se samjhaye. .
Meri rachna par aapki upasthiti ke liye haardik aabhar. . .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 8:54pm

’लघुकथा’ संवाद शैली में प्रस्तुत हुई है.
यदि व्यक्तिगत स्मृतियाँ निहित न हों, तो ये संवाद कोई शैलीगत प्रस्तुति नहीं बना पा रहे हैं.
आपकी उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद.
शुभेच्छाएँ.

Comment by pooja yadav on December 28, 2014 at 8:24pm
Iske atirikt dr. Gopal narayan shrivastava, hari parakash dubey ji, rajesh kumari ji, somesh kumar ji. . .meri rachnao par niyamit roop se pratikriya dene ke liye aapki tahe dil se aabhaari hu. .
Comment by pooja yadav on December 28, 2014 at 8:21pm
Aadarneey yograj ji. .aagaami rachnao mein aapki pratikriya ka sangyaan avashya lungi. .

Aapne hi mujhe kalam pakadna sikhaya h. .ath aapse aage bhi maargdarshan ki apeksha hai. . .apna amulya samay dekar mujhe anugraheet karein. .
Comment by pooja yadav on December 28, 2014 at 8:17pm
Pratikriyao ke liye Aap sabhi ka haardik aabhar. .
Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 12:02am

सबके अपने-अपने दायरे हैं उसी के अनुसार हमारा पिंजरा तय होता है .किसी के लिए खुला आकाश भी एक बंधन/कैद /पिंजरा हो सकता है |अच्छी कोशिश है 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 19, 2014 at 2:51pm

//"भइया मुझे हॉस्टल मेँ नही रहना। मेर दम घुटता है वहाँ। वो सारी लड़कियाँ मुझे डाँटती रहती हैँ मुझे बात भी नही करने देती उन्हे डिस्टर्ब होता है न।//

ये क्या बात हुई पूजा यादव जी ? क्या भाई इतना अहमक है कि इतनी सी बात पर हॉस्टल छुड़वा रहा है ? रैगिंग या किसी अन्य भेदभाव की बात होती या भाई से दूरी बर्दाश्त न कर पाने का दुःख होता तब भी कुछ बात बन सकती थी। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 18, 2014 at 8:07pm

अच्छी लघुकथा... हर भाई अपनी बहन के दुःख समेटे हर बहन भाई के तो ये दुनिया सबसे खूबसूरत हो जाए ..बहुत- बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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