For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तरही ग़ज़ल - देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122    212 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -

( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )

**************************************************************************** 

ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई

जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई  -

 

बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट  

 

फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ

बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई हुई

जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर

देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई 

 

जड़- तने ख़ामोश लगते , नाचतीं हैं डालियाँ

सोचता हूँ , क्यों वहीं पर मुर्दनी सोई हुई

 

मुंतज़िर हूँ , कब कबा उधड़े , हक़ीकत हो अयाँ -

हर बनावट में कहीं है सादगी सोई हुई  

 

मुंतज़िर - प्रतीक्षा में , क़बा – चोगा

 

खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो  - 

बात कोई है अधूरी सब में ही सोई हुई

कामिल – पूर्ण

 

क़ैद है मेरी नज़र में वो नज़ारा ख़ूब रू 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई "

*****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2015 at 11:09am

आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 8:15am

आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 31, 2014 at 12:06pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , आपकी सराहना मुझे हमेशा हौसला देती है , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 31, 2014 at 12:04pm

आदरणीय राहुल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 31, 2014 at 12:04pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई ,हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:50am

जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर

देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई 

 

खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो  - 

बात कोई सी अधूरी सब में है सोई हुई

आदरणीय गिरिराज सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार लाज़वाब हुये हैं |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 31, 2014 at 9:43am
वाह वाह वाह बहुत सुन्दर गजल आदरणीय गिरिराज सर जी!
Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 10:50pm

देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ......आदरणीय गिरिराज सर,बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:46pm

शुक्रिया , आदरणीय मिथिलेश भाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 8:26pm
बहुत खूब जमाया गिरिराज सर। बेहतरीन अशआर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service