आप कविता लिखते हैं ? .. कौन बोला लिखने को..?
शब्द पीट-पीट के अलाय-बलाय करने को ?
मारे दिमाग़ खराब किये हैं ?
कुच्छ नहीं बदलता.. कुच्च्छ नहीं. ..
इतिहास पढ़े हैं ?
क्या बदला आजतक ? ...
खलसा कलेवर !
केवल ढंग !
महज़ अंदाज़ !
बकिया सब ?.. .
जो ढेरम्ढेर लिख-लिख पूछते फिरियेगा न, तो बुद्धिजीवी नहीं
सीधा ’नकसल्ली’ कहलाइयेगा.. एक नम्मर का बवाली..
किसी सोये को उकसाना.. मालूम ? घोर हिंसा को बढ़ावा देना है !
पता है.. ?
जाइये, बोल-बचन बनाइये,
शब्द गढ़िये, मात्रा गिनिये, पंक्तियों में गठन लाइये..
छन्द निभाइये.. आ मस्त रहिये !
गाँव-समाज-दुख-व्याधि-मानवता.. ऐसी की तैसी..
एक पूरा समाज भहराया पड़ा है.. त्रस्त.. लाल-लाल आँखें लिये.
ऐसे समाज के कुनबों को कुचलना
प्रशासन को सहयोग देना होता है / हमेशा से !
सभी प्रशासन को सहयोग दें.. देना ही चाहिये..
तभी दिन अच्छे आ पायेंगे.
विशिष्ट जमात में अपनी आमद की रौनक बजती है..
जाइये, आप भी रौनक बजाइये..
कापुरुषत्व अब सधे पौरुष का पर्याय है.
और साहित्य का संधान -- हाशिये पर पड़े.. नहीं-नहीं.. .
मुँहचोर हुआ करते हैं अब !
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-सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अपने तीक्षण भावों से अंतर्मन तक घाव करती प्रस्तुत रचना वर्तमान का आईना है। आज किसके पास फुर्सत है जो शब्दों के मर्म से युग परिवर्तन के बारे में सोचे। इस गहन भावों को अभिव्यक्त करती रचना की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।
आदरणीय भाई सौरभ जी ,दिमाग सुन्न कर दिया और दिल के पट्टर खोल दिए , हार्दिक बधाई .
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर ,क्या गज़ब की रचना है ..इतिहास पढ़े हैं ? क्या बदला आजतक ? ...सीधा ’नकसल्ली’ कहलाइयेगा...जाइये, आप भी रौनक बजाइये..मुँहचोर हुआ करते हैं अब !........ अतुलनीय, वर्तमान व्यवस्था पर चोट करती सार्थक कविता , एक ही बार में , मुक्तिबोध,शमशेर,सहाय, डंगवाल सभी याद आते हैं ...पर ये सौरभ पाण्डेय जी का अपना तरीका... कोई तुलना नहीं ... हार्दिक बधाई आपको ! सादर
झकझोर कर रख दिया अपने आदरणीय – वाह
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