कभी ठोकरों से सँभल गये
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11212 11212 11212 11212
न मैं कह सका, न वो सुन सके, मिले लम्हें थे,वो निकल गये
मैं इधर मुड़ा, वो उधर मुड़े , मेरे रास्ते, ही बदल गये
तेरी यादों की, हुई बारिशों , ने बहा लिया, कभी नींद को
कभी याद हम ही न कर सके, तो उदासियों में भी ढल गये
कभी हालतों से सुलह भी की, कभी वक़्त का किया सामना
कभी रुक गये, कभी जम गये, कभी बर्फ बन के पिघल गये
कभी बिन पिये रही बेखुदी, कहीं लड़खड़ाये पिये बिना
कभी पी के भी रहे होश में, कभी ठोकरों से सँभल गये
कहीं छोड़ दी सभी कोशिशें, तो हवा की रौ ने बहा लिया
दिया हौसलों ने भी साथ जब, मेरे ख़्वाब सारे मचल गये
कभी ये पकड़ ,कभी वो पकड़, कभी जा इधर, कभी जा उधर
कभी तय हुये नहीं रास्ते , वो जो हाथ आये थे पल गये
कभी हादिसों ने रुलाया तो , कभी गमज़दों की पुकार ने
कभी बढ़ के दिल से लगा लिया, कभी आँसुओं से दहल गये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
कभी हादिसों ने रुलाया तो , कभी गमज़दों की पुकार ने
कभी बढ़ के दिल से लगा लिया, कभी आँसुओं से दहल गये
बहुत सुन्दर मिसरा ,आ. भंडारी जी |
हर शे'र में जीवन की लय बहती दिखी ,वास्तविकता का सुंदर बयान
कहीं छोड़ दी सभी कोशिशें, तो हवा की रौ ने बहा लिया
दिया हौसलों ने भी साथ जब, मेरे ख़्वाब सारे मचल गये
आदरणीय गिरिराज सर , उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |
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