कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें
बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे
कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं
बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |
(2)
सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |
(मौलिक व प्रकाशित)
Comment
छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री सोमेश कुमार जी
आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी | ओबीओ पर आपको सभी विधाओं की जानकारी शनैः शनैः हो जायेगी | सादर
प्रेम और शीतलहर वाह !दोनों कुंडलियाँ अलग-अलग होते हुए भी कुछ हद तक जुड़ी हैं|आँखे प्रेम की प्रथम सीढ़ी और सरकारी रैन बसेरे या कह लें गृह-विहीनों के लिए सरकारी प्रेम जो मिडिया की आँखों से होता हुआ सरकार के दिल में खलबली मचाता है |सुंदर |
हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी
कुण्डलिया छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री सुशील सरना जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई , दोनो कुंडलिया के लिये आपको बधाइयाँ ।
छंद सराहने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री गणेशजी "बागी" जी
भाव सराहने के लिए और त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री हरी प्रकाश दुबे जी और श्री मिथिलेश वामनकर जी
कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
वाह आदरणीय रामानुज जी क्या सुंदर भावों को आपने कुण्डलिया छंदों में अपने पिरोया है -बहुत खूब -हार्दिक बधाई सर।
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