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चुनावी जिन्न(कविता )

जांचे परखें और चुनें

चलों नया देश बुनें

रूढ़ परिपाटी हों छिन्न

सच्च हों ,अच्छे दिन |

ये भाषण का व्यवहार

और सतरंगी इश्तिहार

कायाकल्प हो सर्वांगीण

ना केवल चाय नमकीन |

बंद तोड़फोड़ और धरने

सियासी नफ़ा आमजन मरने

पहुंच जाएँगे बुलंदी पर

चटाकर हमें जमीन |

झाड़ू हाथी कमल हाथ

क्रांति जाति धर्म सब-साथ

एक थैली के ही चट्टे-बट्टे

देखों ना इन्हें भिन्न |

अज़ीब-अज़ीब मुखौटे

कोई मुहँ फुलाकर बैठा

कोई मुस्कुराकर लौटे

लगा है खुश औ’ खिन्न |

लग रहे बड़े-बड़े दाँव

हो रहा बड़ा-बड़ा दाँवा

निकला फिर बोतल से

बंद बिगड़ैल चुनावी जिन्न |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:17pm
सुन्दर रचना !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 10:00pm

अच्छी व्यंगात्मक प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको सोमेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:31pm

सोमेश जी एक ही रचना में कई बातों को आपने जगह दी है, अच्छी रचना बन पड़ी है, बधाई प्रेषित है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 22, 2015 at 8:03pm

आदरणीय सोमेश भाई जी, बहुत खूब. सच यही हाल है लोकतंत्र के महोत्सव का. बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on January 22, 2015 at 7:57pm

सोमेश भाई, सुन्दर प्रयास हार्दिक बधाई आपको  ..सब-साथ.....इस पर गौर करिए सब  साथ - साथ ....दाँवा की जगह दावा .और बाकी 

डॉ गोपाल सर ने कह ही दिया है! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 22, 2015 at 7:19pm

आदरणीय सोमेश भाई सुन्दर प्रस्तुति ... बधाई 

Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 7:03pm

ji sir ,abhi aur sudhar aa jaie,to thik krta hun

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 22, 2015 at 12:57pm

सोमेश जी

निम्न पंक्ति पर गौर् करें-

एक थैली के ही चट्टे-बट्टे

देखों ना इन्हें अभिन्न------------------- यहाँ अभिन्न के स्थान पर भिन्न ही रखे तो ---- i आप स्वयम देखें

कृपया ध्यान दे...

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