चुनावी जिन्न(कविता )
जांचे परखें और चुनें
चलों नया देश बुनें
रूढ़ परिपाटी हों छिन्न
सच्च हों ,अच्छे दिन |
ये भाषण का व्यवहार
और सतरंगी इश्तिहार
कायाकल्प हो सर्वांगीण
ना केवल चाय नमकीन |
बंद तोड़फोड़ और धरने
सियासी नफ़ा आमजन मरने
पहुंच जाएँगे बुलंदी पर
चटाकर हमें जमीन |
झाड़ू हाथी कमल हाथ
क्रांति जाति धर्म सब-साथ
एक थैली के ही चट्टे-बट्टे
देखों ना इन्हें भिन्न |
अज़ीब-अज़ीब मुखौटे
कोई मुहँ फुलाकर बैठा
कोई मुस्कुराकर लौटे
लगा है खुश औ’ खिन्न |
लग रहे बड़े-बड़े दाँव
हो रहा बड़ा-बड़ा दाँवा
निकला फिर बोतल से
बंद बिगड़ैल चुनावी जिन्न |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
कृपया संसोधन हेतू अपेक्षित सुधार बताएं
Comment
अच्छी व्यंगात्मक प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको सोमेश जी
सोमेश जी एक ही रचना में कई बातों को आपने जगह दी है, अच्छी रचना बन पड़ी है, बधाई प्रेषित है.
आदरणीय सोमेश भाई जी, बहुत खूब. सच यही हाल है लोकतंत्र के महोत्सव का. बधाई
सोमेश भाई, सुन्दर प्रयास हार्दिक बधाई आपको ..सब-साथ.....इस पर गौर करिए सब साथ - साथ ....दाँवा की जगह दावा .और बाकी
डॉ गोपाल सर ने कह ही दिया है! सादर
आदरणीय सोमेश भाई सुन्दर प्रस्तुति ... बधाई
ji sir ,abhi aur sudhar aa jaie,to thik krta hun
सोमेश जी
निम्न पंक्ति पर गौर् करें-
एक थैली के ही चट्टे-बट्टे
देखों ना इन्हें अभिन्न------------------- यहाँ अभिन्न के स्थान पर भिन्न ही रखे तो ---- i आप स्वयम देखें
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