"अरे!! तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”
“हाँ! साहब, अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब, वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे, तो इन्हें अपने घर ले आया...”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना पर आपकी स्नेहिल सराहना से ख़ुशी मिलती है आदरणीय सोमेश भाई जी
सादर!
आदरणीय मिथलेश सर जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखियेगा.. सादर!
आदरणीय जितेन्द्र भाई , आ. शिज्जु भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ , आज कल महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने के बजाये उन्हे अपने स्वार्थ सिद्धि का माध्यम बनाया जा रहा है ! आपके कथा जुछ इसी बात का इशारा कर रही है ! आपको इस सामाजिक कटाक्ष के लिए बधाई ।
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर, अपने सन्देश को संप्रेषित करती प्रभावशील लघु कथा ,हार्दिक बधाई !
कटु मगर सत्य जिस व्यक्ति ने अपना जीवन दूसरों को समर्पित कर दिया लोग अब उनके सिद्धांतों पर चलने के बजाये उनके नाम पर स्वार्थ साधने में लगे हैं। आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये
बहुत सुन्दर प्रभावशील लघु कथा ,हार्दिक बधाई जीतेन्द्र भैय्या.
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