अराजक(लघुकथा )
“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा
“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”
“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया
“नहीं!”वो मायूस हो गया
“ तो भाई पीछे जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला
“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा
“ व्यवस्था से पंगा लेने वाला आम आदमी मत बन –अराजक कहलाएगा| “पुलिस वाले ने उसका हाथ पकड़ लिया
“और ऐसे भगोड़ा बोलोगे |”वो हाथ झटकते हुए खड़ा हो गया |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सोमेश जी
लघु कथा की अंतिम लाइन में प्रायः जबरदस्त पंच होता है i आपकी कथा में 'और ऐसे भगोड़ा बोलोगे 'में पंच नहीं है न ही बहुत व्यंग्य न ही बहुत सार्थकता जो श्रोता को उद्वेलित कर दे i पर प्रयास करते रहिये i सादर i
सोमेश भाई सुन्दर प्रयास, हार्दिक बधाई ! बाकी धीरे -२ प्रयास से और बेहतर से बेहतर हो जाएगा ! सादर
बतौर विषय लघुकथा अच्छी है आदरणीय सोमेश जी. सुधिजनो के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है.
priya somes ji,
Acchi lagu katha hai. Aam aur Khas ka fark mitne main kafi wakt lagega.
Badhai ho.
आदरणीय सोमेश भाई , बातें कुछ कुछ समझ में आईं , लघुकथा के शिल्प का ज्ञान नहीं है , पर आदरणीय विनोद भाई के विचारों का अनुमोदन करता हूँ , जल्दबाज़ी हो गई शायद । लघुकथा के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
sukriya mithlesh evm vijay bhai ,Vinod Khngwal bhai ji aap ki prtikriya shi hai shayd is lghukha pr thodhi si mehnt krne ki jrurt thee .isika edited version maine AAM ADMI ke naam se f-book pe dala hai ,shyad aap ko psnd aai
आदरणीय सोमेश भाई जी अच्छी लघुकथा हुई है ... बधाई
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