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लघुकथा : गैरत (गणेश जी बागी)

शेखर वेश्यावृति पर केन्द्रित एक किताब लिख रहा था, किन्तु उसे पत्रकार समझ इस धंधे से जुड़ी कोई भी लड़की कुछ बताना नहीं चाहती थी, आखिर उसने ग्राहक बन वहाँ जाने का निर्णय लिया.

“आओ साहब आओ, पाँच सौ लगेंगे, उससे एक पैसा कम नहीं”
शेखर ने हाँ में सर हिलाया और उसके साथ कमरे में चला गया.

“सुनो, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ”

“बाssत ?”

“हां, कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ”

“ऐ... साहेब, काहे को अपना और मेरा समय खोटी कर रहे हो, आप अपना काम करो और यहाँ से निकलो”

बहुत आग्रह के बाद भी जब वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं हुई तो शेखर उठा और उसकी हथेली पर पाँच सौ का नोट रखकर चलने लगा.
“ऐ साहेब, ये पैसे आप वापस रखों, मैं बगैर काम पैसे नहीं लेती”.

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : वात्सल्य

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on January 27, 2015 at 8:21pm

वाह बागी जी कमाल कथा कही है बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई '


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 7:57pm

आदरणीय बागी जी , ये सच है कि गलत काम किसी बड़ी मजबूरी मे करना ही पड़े , और उस मजबूरी को हर पल जिया जाये तो , स्वाभिमान कभी मरता नहीं , पानी में तेल से समान हमेशा तैरता रहता है । बहुत बारीक मनोस्थिति को आपकी कथा ले कर चली है  , दिल से बधाइयाँ आपको ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 6:52pm

आदरणीय इंजिनियर गणेश जी “बागी” सर , .....वाह ....जहां फाइलें सरकाने के लिए भी पैसे देने का चलन है वहीँ किसी की गैरत कहती है “मैं बगैर काम पैसे नहीं लेती”.....वाह ...... बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई ! सादर

Comment by विनय कुमार on January 27, 2015 at 6:07pm

गैरत अभी बाकी है, बहुत उम्दा लघुकथा | बधाई आपको | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 27, 2015 at 2:29pm

आज के समय में पैसों के लिए, इंसान की अकर्मण्यता और शार्टकट मारने की आदतों पर गजब का प्रहार करती लघुकथा पर, हार्दिक बधाई आदरणीय बागी जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 1:41pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय इंजिनियर नोहर सिंह ध्रूव 'नरेन्द्र' जी. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 1:39pm

उत्साहवर्धन और सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 1:37pm

आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, सकरात्मक प्रतिक्रया हेतु बहुत बहुत आभार.

Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on January 27, 2015 at 1:00pm
बहुत खूब गणेश जी..
Comment by Shyam Narain Verma on January 27, 2015 at 12:55pm

बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,,

 सादर .................

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