बरसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली गयी .
स्टडी रिपोर्ट में गाँव, गलियां, गाय, गोबर, गेहूं, खेत, खलिहान, किसान, नदी, कुआँ इत्यादि के बारे में जिक्र के साथ एक बात प्रमुखता के साथ लिखी गयी.
“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
अरे कहऽ मत ! क्या स्टडी-रिपोर्ट है ! वाह !!
ज़मीन से उखड़ी पीढ़ियाँ ऐसे ही कमाल करती है. और, नई पीढ़ी ज़मीन से स्वयं नहीं उखड़ती. इसे उखाड़ते हैं हम-आप.
बहुत-बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर गणेश भाई.
एक महानगर में रहने वाले उच्च वर्गीय परिवार की मिडिल स्कूल की बच्ची को ’गरीब’ पर लेख लिखना था. उसने लिखा - मेरे पड़ोसी बहुत गरीब हैं. उनके पास बस एक कार है, जिसे पूरी फ़ैमिली शेयर करती है. उनकी आउटिंग भी मन्थली ही होती है. उनके बस ड्राइंगरूम में ही एसी है. हाउ पूअर !
भइया, ऐसे ही बच्चे लघुकथा में वर्णित झोपड़ियों में ’वाटर-हार्वेस्टिंग’ देख आते हैं.
शुभ-शुभ
आदरणीया भावना तिवारी जी लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सकरात्मक प्रतिक्रिया देख मन मुग्ध है बहुत बहुत आभार.
असरदार .....एकदम दिमाग़ और मन को सोचने पर विवश करती लघुकथा ...बधाई
प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन हेतु हृदय से आभार आदरणीय विनय कुमार जी.
आजकल के शहरी लड़के , लड़कियां जो न कर दें | बहुत सुन्दर लघुकथा , बधाई आपको..
बहुत बहुत आभार आदरणीया वेदिका जी.
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