कैसे होते हैं ये रिश्ते
कभी दूर, कभी पास
कभी अपने, कभी पराये
कभी सच्चे, कभी झूठे
कभी नादाँ, कभी ग़मगीन
कभी उम्रदराज़, कभी कमसिन
कभी हठीले, कभी गर्वीले
तो कभी कभी सिफारशी भी होते हैं ये रिश्ते
कभी कभी गुमनाम भी होते हैं रिश्ते
कभी कभी बदनाम भी हो जाते हैं रिश्ते
कभी एक दुसरे को कसूरवार भी ठहराते हैं रिश्ते
कभी कभी निभ जाते और कभी कभी निभाने भी पड़ते हैं रिश्ते
कभी अपनी खातिर और कभी दूसरों के लिए वक़्त मांगते हैं रिश्ते
कभी खुद में सिमट जाते और कभी रुस्वा भी हो जाते हैं रिश्ते
क्या इंसा इन रिश्तों से बच पाया है, बच सकता है
जब तक है सांस, निभाते ही तो हैं रिश्ते
तो क्यों न इन रिश्तों को मन से निभाएं
बोझ न समझें और हमेशा मुस्कुराएं
क्योंकि रिश्तों की ख़ूबसूरती इसी में है
आप भी मुस्कुराएं और जग भी मुस्कुराये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बेगोवालजी आपका हार्दिक धन्यवाद
सुंदर कविता के लिए धन्यवाद कबूल करें
परम श्रेष्ठ हरी जी आपका बहुत आभार आपका मार्ग दर्शन भी अपेक्षित है
आदरणीय सविता जी हृदय से धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत आभार एप प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहेगा ऐसी आशा है
आदरणीय जीतेन्द्र जी हृदय से धन्यवाद
बहुत सुंदर, आदरणीय अनुराग जी.
आदरणीय अनुराग भाई , अच्छी रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।
बहुत सुन्दर
आदरणीय अनुराग गोयल जी , आदरणीय मिथिलेश जी की बात से सहमत हूँ ,आपका ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में स्वागत है ,रचना सुन्दर भावों से सजी है , बस ये “कभी” शब्द कई बार आ गया है ,आपको हार्दिक बधाई !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online