For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२१२२ — १२१२ — ११२(२२)

खिल रहे हैं सुमन बहारों में

झूमता है पवन बहारों में

 

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में

 

आइने की तरह चमकता है

निखरा निखरा गगन बहारों में

 

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में

 

देखते हैं खिलाता है क्या गुल

आपका आगमन बहारों में

 

हो धनुष कामदेव का जैसे

तेरे तीखे नयन बहारों में

 

घुल गई है फिज़ा में मदिरा सी

हो गई सुध हिरन बहारों में

 

धूप लगती है शाल जैसी

है सुहानी तपन बहारों में

 

होश ‘खुरशीद’ जी न खो देना

रखना काबू में मन बहारों में

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 7, 2015 at 9:46pm

आदरणीय खुर्शीद सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हर एक शेर उम्दा और कमाल का है. मतला बहुत खूब. फिर हर शेर वाह वाह वाह ... मक्ता बेहतरीन. हार्दिक बधाई ... ये अशआर जो दिल में सीधे उतर गए.

खिल रहे हैं सुमन बहारों में

झूमता है पवन बहारों में............ वाह क्या मतला हुआ है 

 

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में.... बहुत खूब 

 

आइने की तरह चमकता है

निखरा निखरा गगन बहारों में... वाह वाह 

 

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में.... आय हाय क्या नजाकत है कहन में 

 

देखते हैं खिलाता है क्या गुल

आपका आगमन बहारों में....... वाह वाह ...

"धूप लगती है शाल  के  जैसी"

है सुहानी तपन बहारों में..... सुन्दर 

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 8:09pm

आदरणीय  कबीर  साहब , ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया |आपने सही फरमाया इस मिसरे में " के " छूट गया है |मंच से  निवेदन  है कि आठवे शेर के ऊला मिसरे को "धूप लगती है शाल  के  जैसी" पढ़ने की कृपा करें |कबीर साहब करम बनाये रखियेगा |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 8:02pm

आदरणीय बागी साहब , आदरणीय जितेंदर साहब और आदरणीय श्यामनारायण जी ,आप सभी का ह्रदय की गहराइयों से आभार |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 8:00pm

आदरणीय खुरशीद भाई , बहुत खूब सूरती से आपने रदीफ का निर्वहन किया है , वाह ! हर शे र लाजवाब है । दिली बधाइयाँ । आदरणीय कबीर भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ , धूप लगती है शाल जैसी   - इस मिसरे में-  के - टाइप होना रह गया है ॥

Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2015 at 4:44pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।
Comment by Samar kabeer on February 7, 2015 at 3:02pm
जनाब ख़ुरशीद जी,आदाब,सुंदर ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद पेश करता हूँ,ग़ज़ल का हर शैर बाहारों से सजा हुवा है लेकिन इस मिसरे की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा "धूप लगती है शाल जैसी" इस मिसरे में "के" शायद टाइपिंग की ग़लती से लिखने से रह गया,मिसरा यूँ होना था "धूप लगती है शाल के जैसी"
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:35pm

वाह! बहुत ही खूबसूरत अश'आर कहे, आदरणीय खुर्शीद साहब.

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में.....बहुत सादगीपूर्ण. दिली बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 1:22pm

आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी, फाल्गुनी बयार की झलक आपके अशआरों में भी महसूस की जा सकती है, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service