22--22--22--22--22--22--22--2 |
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हँसते - हँसते रो लेता हूँ, रोते - रोते हँसता हूँ |
कोई मुझसे ये मत पूछो आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ |
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आईने-सी शक्ल बना कर इक नुक्कड़ पर बैठा हूँ |
कितने उजले, कितने काले, चेहरे गिनते रहता हूँ |
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ऐसा होगा, वैसा होगा, आज हुकूमत बदलेगी |
अपनी तो औकात ज़रा-सी, सबकी बातें सुनता हूँ |
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दिल का मतला, दर्द काफिया, छोटी बह्र है जीवन की |
सिर्फ अक़ीदत के लफ्जों से, सादी गज़लें लिखता हूँ |
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गम की दुनिया अपने भीतर, यारां ऐसे कैद न कर |
अपना गम मुझको बतला दे, मैं भी तेरे जैसा हूँ |
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सूरज, चाँद, सितारे, लोरी, खेल-खिलौने छूट गए |
फिर से ये सब मुझे दिलाओ मैं भी छोटा बच्चा हूँ |
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घर का ये आँगन लगता है जनम-जनम का प्यासा है |
जब भी आता-जाता घर में, पाँव भिगोकर चलता हूँ |
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दिल की बाते आज सितारों को बतला के चैन मिला |
पलकों से बादल-सा उतरा, खूब झमाझम बरसा हूँ |
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Comment
घर का ये आँगन लगता है जनम-जनम का प्यासा है
जब भी आता-जाता घर में, पाँव भिगोकर चलता हूँ
दिल की बाते आज सितारों को बतला के चैन मिला
पलकों से बादल-सा उतरा, खूब झमाझम बरसा हूँ
काफ़िया,रुक्न,अरकान सब आप जाने मगर ग़ज़ल का हर अशआर हमें भा गया है .... इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।
दर असल ये बह्र मेरे खयाल से , 22 22 22 22 22 22 22 2 के रूप मे लिखा जाता है , इसमे 22 को 112 121 211 करने की छूट होती है , मेरे हिसाब से तो कोई गलती नहीं है , आगे आ. समर भाई जानें ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत सीधी, सरल ,लाजवाब गज़ल हुई है , हार्दिक बधाई ॥ सक्ता , मात्रा या हर्फ की कमी बेशी को ही कहते है शायद ।
क्या बात है भाई साहब...आपको बधाई
आदरणीया डिम्पल गौर 'अनन्या' जी, रचना के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार.
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