For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(एक तरही ग़ज़ल )“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं" ( गिरिराज भंडारी )

 221   2121  1221    2 2

रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं  --

रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं

शम्सो क़मर - चाँद  सूरज

 

तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं

सब ख़ाक हो चुका यहाँ  कोई शरर नहीं

रो ले अगर, तेरा बिना  रोये गुज़र  नहीं

लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं

 

सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना

मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं

 

मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें

लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं

 

कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें  

धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं

ज़िंदाँ – कारागार , ज़रर – नुक्सान

 

क्यों इब्न ही रहे किन्हीं आँखों का नूर अब

क्यों बिंत कोई, आज भी नूरे नज़र नहीं

इब्न – बेटा , बिंत – बेटी

 

दुश्वारियों ने खुद ही जिन्हें हौसला दिया

वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं

 

हर चीज़ रंग रोज़ बदलती रही है , तब

ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं

 

हर लम्हा कह रहा है, यही रोज़ बस हमें 

“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं" 

**************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 1188

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2015 at 9:59pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई. ये शेर तो कमाल हुए है-

तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं

सब ख़ाक हो चुका यहाँ  कोई शरर नहीं

रो ले अगर, तेरा बिना  रोये गुज़र  नहीं

लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं

 

सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना

मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं

 

मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें

लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 9:05pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही सुन्दर ,आप जैसे लोगों से ही प्रेरणा मिलती है , बधाई स्वीकार करें संपूर्ण रचना पर ...पर ये शेर दिल मैं अटक गया .................

कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें  

धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं........लाजवाब ! सादर 

Comment by maharshi tripathi on February 11, 2015 at 7:45pm

बहुत सुन्दर गजल आ, गिरिराज जी |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 11, 2015 at 6:29pm

हर चीज़ बदलती यहाँ है रोज़ रोज़, तब

ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं......वाह! बहुत खूब, दिली बधाई आदरणीय गिरिराज जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 4:07pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , बह्र के विषय मे इरशाद गुप को मेसेज कर दिया है , शायद वो भी सुधार लें । मै अभी सुधार के लिख रहा हूँ ।

आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 12:41pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , आपको गज़ल के कुछ अशआर पसन्द आये तो गज़ल कहना सार्थक हो गया । आपका तहे दिल से शुक्रिया 

आदरणीय , ये मिसरा, फेसबुक के इरशाद ग्रुप मे दिया हुआ है, मिसरे की तक्तीअ मैने नहीं  की है, वहाँ निम्न तक्तीअ की गई है --

◘मिसरा- " सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं"  

◘ काफिये- असर, शजर, बशर, इधर, उधर, नज़र  ....इत्यादि   

◘रदीफ़ - नहीं    

◘ तख्ती - 22121212 221212 

आदरणीय शिज्जु भाई से फोन मे बात हुई थी उनका भी वही कहना  है , जो आप कह रहे हैं । मुझे आप पर और आपके ज्ञान पर पू यक़ीन है , परंतु इसे मुझे इरसाद ग्रुप मे पोस्ट करना है , तो उनकी तक्तीअ को सही मान के ही पोस्ट करना पड़ेग़ा , 221--2121--1221--212 '  के अनुसार कुछ शे र सुधारना पडेगा , वो मै बाद में कर लूंगा । आशा है आप बात समझ लेंगे ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 12:24pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ।

Comment by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:53am

रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं  --

रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं

कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें  

धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें |इन अशहार पर  ढेरों दाद क़बूल फरमावें |

दुश्वारियों ने खुद ही जिनको हौसला दिया

वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं

हर चीज़ बदलती यहाँ है रोज़ रोज़, तब

ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं

क्षमापार्थी हूं किंतु अकिंचन की तुच्छ जानकारी में तरही मिसरे की बह्र '221--2121--1221--212 ' है |इसी बह्र पर "दुनिया करे सवाल तो हम क्या ज़वाब दें "  | शायद दोनों मिलती जुलती बहरें हों और मैं दिग्भर्मित हो रहा होऊं |मार्गदर्शन की कृपा करें |कृपया इसे अनुज की धृष्टता न समझें |आपका स्नेह मेरे लिए अनमोल है |सादर अभिनन्दन |

 

Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2015 at 10:59am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service