तुम चलाओ गैंती-फावड़ा
काटो पत्थर, बनाओ नाली
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी
यही है तुम्हारी नियति....
तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो
और आराम के पल का ज़िक्र हो...
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई आँखें
लेकिन होना चाहिए ऐसी अभिव्यक्ति
कि एकदम भोगा हुआ यथार्थ...
तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता
कि कितनी बेताबी से तुम
करते आ रहे हो प्रतीक्षा
अपने रिटायर्मेंट की
या मृत्यु की...
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अनवर सुहैलजी, एक अरसे बाद आपकी कोई सशक्त रचना पढ़ी है. दिल से बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक शुभकामनाएँ
तुम चलाओ गैंती-फावड़ा
काटो पत्थर, बनाओ नाली
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी
यही है तुम्हारी नियति....
तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो
और आराम के पल का ज़िक्र हो...
बहुत दिनों बाद इतनी सार्थक कविता पढ़ी...मजलूमों को सन्देश देती और उनकी आवाज़ उठाती..आदरणीय अनवर जी प्रणाम स्वीकार करें!
शुक्रिया परम-स्नेहीजन...मेरे विचार आप सभी को पसंद आये...एक बार फिर शुक्रिया
आदरणीय अनवर सुहेल जी ,बहुत गूढ़ बात कहती बेहद सुन्दर प्रस्तुति हुई है , बधाई l
बहुत गूढ़ बात कही है आदरणीय अनवर सुहेल जी
//तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता
कि कितनी बेताबी से तुम
करते आ रहे हो प्रतीक्षा
अपने रिटायर्मेंट की
या मृत्यु की// सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें ! सादर
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