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ग़ज़ल - ' मौन को भी जवाब ही समझें ' -- गिरिराज भंडारी

' मौन को भी जवाब ही समझें '

2122   1212    112  /  22

***************************

जिन्दगी को हुबाब ही समझें

संग काँटे, गुलाब ही समझें

 

बदलियों ने चमक चुरा ली है

पर उसे माहताब ही समझें

 

शर्म आखों में है अगर बाक़ी

क्यों न उसको नक़ाब ही समझें  

 

इक दिया भी जला दिखे घर में

तो उसे आफ़ताब ही समझें

 

ठीक है , टूटता बिखरता है

पर उसे आप ख़्वाब ही समझें

 

दस्ते रस से अगर है दूर कोई

क्या उसे हम ख़राब ही समझें

 

बुझ गई आग गंदे पानी से

क्या पियें ? और आब ही समझें

 

हाथ उठ्ठे हैं मेरी जानिब से

मौन को भी जवाब ही समझें

 

इक नशा है ग़ज़ल सराई भी

कहने वाले , शराब ही समझें

***************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 19, 2015 at 7:20pm

आदरणीय गिरिराज भाई गज़ब के अहसासों से परिपूर्ण इस ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें खासकर इस शे'र के लिए                 ''शर्म आखों में है अगर बाक़ी
क्यों न उसको नक़ाब ही समझें ''


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 4:02pm

आदारणीय दिनेश भाई , आपकी तारीफ ने ग़ज़ल कहना सार्थक कर दिया !! हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by दिनेश कुमार on February 19, 2015 at 3:09pm
शर्म आखों में है अगर बाक़ी
क्यों न उसको नक़ाब ही समझें .....

हाथ उठ्ठे हैं मेरी जानिब से
मौन को भी जवाब ही समझें ......

इक नशा है ग़ज़ल सराई भी
कहने वाले , शराब ही समझें .....


कलम ही तोड़ दी है आप ने आदरणीय गिरिराज सर जी। लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूल करें। इक नशा है ग़ज़ल सराई भी ......बिल्कुल सत्य वचन।
शायरी नाम तसव्वुर में छलकती मय का ..... मर ही जाते जो न पीने की इजाज़त होती

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 2:19pm

आदरणीय बड़े भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 2:18pm

आदरणीय परि एम श्लोक भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया आपका ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 2:17pm

आदरणीय सर्वेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 2:16pm

आदरणीय विजय भाई हौसला अफज़ाका का तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 19, 2015 at 12:48pm

अनुज /मित्र

मौन स्वीकृत  लक्षणम् तो सुना था पर मौन  जवाब भी हो सकता है आपकी गजल की जानिब से जाना i  सुन्दर ---- i

Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 11:56am
हाथ उठ्ठे हैं मेरी जानिब से

मौन को भी जवाब ही समझें
वाह क्या बात है ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति गिरिराज भंडारी जी ...
Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 11:55am
हाथ उठ्ठे हैं मेरी जानिब से

मौन को भी जवाब ही समझें
वाह क्या बात है ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति जनाब

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