आम्र मंजरी झूमती ,मादक महके बाग
-हर्षित कोयल कूकती,बौराया सा काग ।
बाबा देवर बन गए, फागुन में वो बात
ललचाये हर बाल मन,रंगों की बारात ।
नई कोपलें भर रहीं,जीवन में मकरंद
लहक रही मद कामनी,उर में भर आनंद ।
लाल टिकुलिया चाँद सी,कजरारे से नैन
बतियाने पनघट लगे ,फागुन गाती रैन ॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आदरणीया कल्पना जी ,सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक आभार ,सादर अभिनन्दन |
सुन्दर दोहों के लिए आपको बधाई आ.कल्पना जी |
आ०Shyam Narain Verma सर आभार /सादर
आ ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आप की सराहना और सलाह के लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ /सादर
सुंदर दोहों की बधाई, पूरे मन से ॥ |
आ० बाजपेयी जी
बहुत भावपूर्ण दोहे है i शिल्प में थोडा सा बिखराव है i मैं कुछ कोशिश करता हूँ -
आम्र मंजरी झूमती ,मादक महके बाग
कोयल कूक हर्षित हुई,बौराया सा काग ।-------हर्षित कोयल कूकती
बाबा देवर बन गए, फागुन में वो बात
ललचाये हर बाल मन,रंगों की बारात ।------------------- अति सुन्दर
नई कोपलें भर रहीं,जीवन में मकरंद
लहक रही मद कामनी,जियरा भर आनंद ।------------लहक रही मद कामिनी उर में भर आनंद
लाल टिकुलीया चाँद सी,कजरारे से नैन-----------टिकुलिया
बतियाने पनघट लगे ,फागुन गाती रैन ॥
फिलहाल सुन्दर प्रयास i आपको बधाई i सादर i
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