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आई भोर कोयलिया बोले मीठे गान में

पारिजात बागान में।

उषा ने अपना आँचल बाँधा

अरुण ने अपना वेग सम्हाला

चला दिवाकर बिहंसी किरणें

जग में सुंदर जादू है डाला । 

दिन सुस्ताता तुम्हें देख पहले पहल विहान में

पारिजात बागान में।

देख मुझे वो देहरी ठिठ्की

केशर हार वो हाथ में लाई

अभी-अभी बचपन बीता है

लेकिन गई नहीं तरुणाई। 

पाला नहीं पड़ा है जब तक रूप और अभिमान में

पारिजात बागान में।

स्वर्णप्रभा सा जगमग करता

बर्फ़ीला सा कौमार्य तुम्हारा

प्रणय और अर्चन दोनों के

बीचों-बीच में भाव हमारा। 

मैं जपती जब प्राणों को तब तुम आती हो ध्यान में

पारिजात बागान में।       

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई "कल्प "

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Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:01am

आ०  जितेन्द्र पस्टारिया भाई जी सादर आभार !!

Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:01am

आ0 Hari Prakash Dubey जी सादर आभार !!

Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:00am

आ० लक्ष्मण रामानुज लडीवाला  जी सादर आभार !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 7:32pm

मधुमास के  आगमन से पूर्व रची सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:18pm

आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी बहुत ही सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 5:35pm

बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति, आदरणीया कल्पना दीदी. हार्दिक बधाई

Comment by kalpna mishra bajpai on January 19, 2015 at 9:35am

आ० somesh kumar जी बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on January 19, 2015 at 9:35am

आ० मिथिलेश वामनकर जी आभार आप का /सादर 

Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:15pm

सुंदर गीत |बहुत बधाई इस रचना हेतू 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 10:42pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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