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लहकी कलियाँ डाल पर ,आँगन छिटकी धूप

चौपाले रौशन हुईं ,बाल बृंद सुर भूप ॥

 

सगुन  चिरैया भोर में, देती शुभ संदेश

पीहर आवे लाडली ,भावे नहीं विदेश ॥

 

रंग  फिज़ाओं में घुला , घर आँगन रंगीन

पुलकित मन सबके हुए ,सभी प्रेम में लीन ॥

 

चम्पा बेला डालिया ,खूब लुटाते गंध

पवन झकोरा ले उड़ा,भीनी मधुर सुगंध ॥    

 

पात हीन थीं डालियाँ,ठंडा यमुना नीर

फागुन मनलहका गया,मिटी सभी की पीर॥

 

पारिजात महके गली ,पुलकित हुई बयार   

स्वप्नीले लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥ 

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

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Comment by kalpna mishra bajpai on February 26, 2015 at 11:18am

अप सभी माननीय जनों का हार्दिक आभार/सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:46pm

आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी,बहुत ही सुन्दर रचना है , बहुत- बहुत बधाई आपको ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 9:22pm

आदरणीया कल्पना जी सुन्दर दोहावली की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 25, 2015 at 8:01pm

वाह कल्पना जी बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं ............ बधाई स्वीकारें

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 7:11pm

आदरणीया कल्पना जी फाल्गुनी दोहों की सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। आदरणीय गोपाल जी द्वारा दिया सुझाव इस प्रस्तुति को ओर भी सुंदर बना देगा ऐसा मेरा विचार है , शेष रचनाकार पर निर्भर है। पुनः आपको हार्दिक बधाई। 

Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 5:48pm

आ. कल्पना जी,,,दोहों की  द्वितीय  प्रस्तुति भी कभी अच्छी लगी ,,,,,आपको बधाई | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:21pm

आ० कल्पना जी

इस बार आपने काफी संयम से दोहे रचे i सुन्दर दोहे रचे i  फिर भी निम्न संशोधन उचित होगा -

पुलकित मन सबके हुए ,दिखें प्रेम में लीन ॥-----------------पुलकित मन सबके हुए ,सभी  प्रेम में लीन ॥

स्वपनीले लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥ ----------------      -स्वप्नीले  लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥ ---- सादर i

 

 

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:39pm
बहुत सुन्दर दोहे ...बधाई
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 1:21pm

बहुत सुन्दर..फाल्गुन का रंग चढ़ने लगा है..

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