लहकी कलियाँ डाल पर ,आँगन छिटकी धूप
चौपाले रौशन हुईं ,बाल बृंद सुर भूप ॥
सगुन चिरैया भोर में, देती शुभ संदेश
पीहर आवे लाडली ,भावे नहीं विदेश ॥
रंग फिज़ाओं में घुला , घर आँगन रंगीन
पुलकित मन सबके हुए ,सभी प्रेम में लीन ॥
चम्पा बेला डालिया ,खूब लुटाते गंध
पवन झकोरा ले उड़ा,भीनी मधुर सुगंध ॥
पात हीन थीं डालियाँ,ठंडा यमुना नीर
फागुन मनलहका गया,मिटी सभी की पीर॥
पारिजात महके गली ,पुलकित हुई बयार
स्वप्नीले लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
अप सभी माननीय जनों का हार्दिक आभार/सादर
आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी,बहुत ही सुन्दर रचना है , बहुत- बहुत बधाई आपको ! सादर
आदरणीया कल्पना जी सुन्दर दोहावली की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
वाह कल्पना जी बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं ............ बधाई स्वीकारें
आदरणीया कल्पना जी फाल्गुनी दोहों की सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। आदरणीय गोपाल जी द्वारा दिया सुझाव इस प्रस्तुति को ओर भी सुंदर बना देगा ऐसा मेरा विचार है , शेष रचनाकार पर निर्भर है। पुनः आपको हार्दिक बधाई।
आ. कल्पना जी,,,दोहों की द्वितीय प्रस्तुति भी कभी अच्छी लगी ,,,,,आपको बधाई |
आ० कल्पना जी
इस बार आपने काफी संयम से दोहे रचे i सुन्दर दोहे रचे i फिर भी निम्न संशोधन उचित होगा -
पुलकित मन सबके हुए ,दिखें प्रेम में लीन ॥-----------------पुलकित मन सबके हुए ,सभी प्रेम में लीन ॥
स्वपनीले लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥ ---------------- -स्वप्नीले लगते दिवस ,बहे प्रेम रस धार ॥ ---- सादर i
बहुत सुन्दर..फाल्गुन का रंग चढ़ने लगा है..
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