गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.
जला के खाक ही कर दे जहान को आशिक़,
अगर उतार दे अपना जुनून काग़ज़ पर..
ग़ज़ल का एक भी मिसरा नहीं कहा मैनें,
थिरक रहा है किसी का फुसून काग़ज़ पर.
कहीं ये अक्स - ए- तमन्ना ही तो नहीं तेरा,
उभर के आया है जो सर निगून काग़ज़ पर..
तमाम रात की तन्हाइयों से छूटा तो
तड़प उठा है वफ़ा का जुनून काग़ज़ पर..
"नदीम" को भी बुलाना अदब की महफ़िल में,
सजा के लाता है दर्द - ए - दुरून काग़ज़ पर..
निर्मल नदीम (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.....बहुत -2 बधाई आपको
आदरणीय मिथिलेश जी सर आपकी सक्रियता वन्दनीय है ,मैं तो केवल दो पोर्टल , "लफ्ज़ ग्रुप "और "ओ बी ओ " पर उपस्तिथ रहने की कोशिश में ही बरहम (अस्त-व्यस्त ) हो जाता हूं |आप कहाँ कहाँ विराजमान हैं भगवन ,,,धन्य है |सोशल साइट्स पर क्या ऐसी ग़ज़ल है जो आप त्रिकालदर्शी के सजग नयन से न गुजरी हो |धन्य हैं आप |शत शत प्रणाम (कृपया प्रहसन को अन्यथा न लें ) हा...हा....हा..| सादर |
तमाम रात की तन्हाइयों से छूटा तो
तड़प उठा है वफ़ा का जुनून काग़ज़ पर..
"नदीम" को भी बुलाना अदब की महफ़िल में,
सजा के लाता है दर्द - ए - दुरून काग़ज़ पर..
आदरणीय नदीम साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय निर्मल नदीम जी, आपकी ग़ज़ल से गुजरते हुए लग रहा था कि आपसे और आपकी ग़ज़लों से पहले भी भेंट हुई है किन्तु याद नहीं आ रहा था. आपका obo पर पर्सनल पेज देखा तो ये आपकी पहली पोस्ट थी. बहुत याद करने पर याद आया कि फेसबुकिया ग़ज़लों पर कमेंट्स के दौरान आपके कमेंट्स पढ़े और फिर आपकी गज़लें भी पढ़ी. आपकी ये ग़ज़ल फेसबुक पर आप 20 फरवरी को ही पोस्ट कर चुके है इसलिए ये ग़ज़ल अप्रकाशित नहीं रही. इस मंच के नियमानुसार पूर्व में प्रकाशित रचना को पोस्ट करना वर्जित है. इसलिए आपसे निवेदन है कि केवल अप्रकाशित रचनाएँ ही पोस्ट करें ताकि मंच के नियम का उल्लंघन न हो. सुलभ सन्दर्भ हेतु -
आदरणीय निर्मल नदीम जी बेहतरीन रचना है हार्दिक बधाई आपको !
urdu ke zyada klisht words ke priyog ki isthiti me unke arth bhi de diye jaye to aur bhi behar hoga ..
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