तू मेहरबां है के खफा है मुझे पता तो लगे..
गुलशन में बातें सुलग रहीं है..जरा हवा तो लगे..
मोहब्बतों में ऐसा जलना भी क्या?बुझना भी क्या?
जले तो आंच न आये,बुझे तो न धुँआ लगे..
अजब हो गया है अब तो चलन मुहब्बतों का..
मै वफ़ा करूँ तो है उसको बुरा लगे...
वो चाहता है के मै उसके जैसा बन जाऊ...
है जो हमारे दरमियाँ न किसी को पता लगे..
इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...
गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा लगे..
ये कैसी मेरे शहर ने की है तरक्की...
जिस शख्श को भी देखता हूँ....है बुझा-बुझा सा लगे..
सरकार में तुम्हारी वहशी दरिन्दे लार टपकाये फिरते है?
इस समाजवाद में ,समाजवादी ठगा-ठगा सा लगे..
तेरे काबां की मै क्या कहूँ बात जाविदाँ ए-दोस्त
मेरे मंदिर में मुझको मेरा भगवान बिल्कुल तेरे खुदा सा लगे..
तेरे अजान जैसे हो शंखनाद मेरे शिव के...
आरती मेरे घर की मुझको कलमा सा लगे...
''मौलिक व अप्रकाशित''
-‘जान’ गोरखपुरी
२५ फ़रवरी २०१५
Comment
आदरणीय मोहन सेठी 'इंतज़ार' जी सादर अभिनन्दन!!..आपकी हौसलाफजाई मेरे लिए अलग मुकाम रखती है..इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें सर!बहुत बहुत शुक्रिया!आभार!
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी बहुत प्रभावी और दमदार शब्द .....बधाई ......मंगलकामनाएँ
भाई maharshi tripathi जी आपका स्नेह पाकर मै अभिभूत हूँ!बहुत बहुत आभार!
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर प्रणाम!प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया!आभार!
आदरणीय rajesh kumari जी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत आभार!
आदरणीय hari prakash dubey ji...प्रणाम स्वीकार करे!..सर आप सभी अग्रज मेरे लिए गुरुतुल्य..मै हर प्रकार से आपका शिष्य/अनुज हूँ..इसलिये आप से विनम्र अनुरोध है कि मेरे लिए आदरणीय संबोधन का प्रयोग कर मुझे पाप का भागी न बनावे...आप सभी गुरुजन सीधे मेरे नाम से ही संबोधित करे!...सर आपको रचना पसंद आई मेरे लिए यही बड़ी उपलब्धि है! बहुत बहुत आभार!
आ .कृष्ण मिश्रा जी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको !
इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...
गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा लगे..उम्दा शेर
तेरे अजान जैसे हो शंखनाद मेरे शिव के...
आरती मेरे घर की मुझको कलमा सा लगे...,,,प्रभावी पंक्तियाँ
बहुत बहुत बधाई आपको कृष्णा जी
तेरे अजान जैसे हो शंखनाद मेरे शिव के...
आरती मेरे घर की मुझको कलमा सा लगे...,,,,,,,अत्यंत सुन्दर पंक्तिया आपको हार्दिक बधाई आ,कृष्णा मिश्रा जी |
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