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चुपचाप अगर तुमसे अरमान जता दूँ तो !
कितना हूँ ज़रूरी मैं, अहसास करा दूँ तो !
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो
ये होंठ बदन बाहें रुख़सार बसंती हैं..
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?
तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !
इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !
जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !!
मौसम के इशारे मैं, हाँ ! खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो..
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--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
मौसम के इशारे मैं, हाँ ! खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो..,,,,,,,इन पंक्तियों पर हार्दिक बधाई आ. सौरभ सर|
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर बहुत ही शानदार रचना है एक एक शब्द कमाल है / जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !! // गज़ब ...
आनंद आ गया सर ,हार्दिक बधाई ! सादर
वाहहह वाहहहह सर
वाह आदरणीय सौरभ जी वाह … नहीं जानते की होली के रंगों का असर कब और कैसा होगा मगर होली की शोखियों में डूबी इस रंगीन ग़ज़ल की रंगीन छटा तो अपनी रंगीनी में हर पाठक को भिगो रही है। प्रस्तुत ग़ज़ल का हर शे'र शोख रंगों से लबरेज़ है। इस शानदार प्रस्तुत्ति पर आपको हार्दिक हार्दिक बधाई और होली मुबारक।
होली से अगर पहले बेबाक खुमारी है
होली में न जाने क्या रंगत हो बता दूँ तो ???:-)))
बड़ी रंगीन ग़ज़ल लिखी है आदरणीय बस और क्या कहूँ बस एक शब्द ---सुभानल्लाह...
आदरणीय सौरभ सर, उम्दा ग़ज़ल हुई है। एक एक शेर पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं। सभी अशआर कमाल हुए है और सीधा दिल में उतरते है। एक शेर ने मीठी मीठी गुदगुदी भी की और झूम गया इसे पढ़कर-
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो
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