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होली का हुड़दंग न खेला, तो क्या खेला जीवन मेें,
भौजी के संग रंग न खेला, तो क्या खेला जीवन में।
फगुआ की मदमस्त हवा में, जन-जन है बौराय रहा,
मानव तो मानव है, देखौ पादप भी बौराय रहा।
नगर-नगर और गली गली में होरियारे गोहराय रहे,
होली का हुड़दंग न खेला तो क्या खेला जीवन में।
पप्पू, रामू, मुन्नू, सोनू सबके हाथों में पिचकारी,
घर से निकली बबली गोरी बौछारों के सम्मुख हारी।
ढोल, नगाड़े, ताशे के संग होरियारों की टोली निकली,
रंग गुलाल गाल को रंगो हुड़दंगो की बोली निकली,
गली-गली औ डगर-डगर में होरियारे गोहराय रहे।
साली के संग रंग न खेला तो क्या खेला जीवन में,
होली का हुड़दंग न खेला तो क्या खेला जीवन में।
अतुल अवस्थी *अतुल*
मो.-9838642000
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 10:15am

Aadarniya Atul ji,

Holi ka achha chitran kiya hai  Badhai .

Rang main Rang Milane se range badalte hain.

Wakt ke saath aadami Ke Dhang Badalte hain

Safar Shuru to kijiye kaee sang Badalte hai.

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 6:15pm

पप्पू, रामू, मुन्नू, सोनू सबके हाथों में पिचकारी,
घर से निकली बबली गोरी बौछारों के सम्मुख हारी।,,,,,,,,,,,,,,सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई आ.अतुल जी | 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:56am

आदरणीय अतुल अवस्थी जी सुन्दर रचना है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2015 at 8:57pm

अतुल जी

बढिया लिखा i आप महोत्सव में रचना क्यों नहीं पोस्ट की i   कोई बात नहीं i शुभ होली i

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